SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 17
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पृष्ठ २३० VIII] वृहद्व्यसंग्रहः [विषय-सूची विषय पृष्ठ । विषय . भरत चक्री ने भी व्रत धारे २५ शुद्ध-द्रव्य की शक्ति रूप शुद्ध पारिणामिकपंचम काल में ध्यान २२६ भाव-निश्चयमोक्ष जीव में पहले से उत्सर्ग व अपवाद से ध्यान का कथन २२६ विद्यमान है। २३० उत्तमसंहनन व १४पूर्व के अभाव में ध्यान२२६ जीव का लक्षण शुद्धपारिणामिकभाव द्रव्यश्रुतज्ञानाभाव में भी अष्टप्रवचनमात्र अविनाशी भाव-श्रुत से केवल-ज्ञानोत्पत्ति २२७ 'आत्मा' शब्द का अर्थ २३१ शिवभूति मुनिक द्रव्यश्रुतज्ञानाभाव २२७ 'अद्वत-जीव-वाद' का खंडन २३२ १२ वें गुणस्थान में जघन्य श्रुतज्ञान २२८ अनन्तज्ञान जीव का लक्षण २३०, २३२ पंचमकाल में परम्परा से मोक्ष २२८ 'अध्यात्म' शब्द का अर्थ २३२ भेदाभेद रत्नत्रयकी भावना से संसार ग्रंथकार की अन्तिम भावना २३२ स्थिति स्तोक २२८ टीकाकार की भावना २३४ उसी भव में मोक्ष होने का नियम नहीं २२८ अल्पश्रुत ज्ञान से ध्यान २२८ लघु-द्रव्य-संग्रह . २३५-२३३ दुर्ध्यान का लक्षण मोक्ष के विषय में नय विचार वृहद्-द्रव्य-संग्रह गाथाः २४०-२४४ बंधपूर्वक मोक्ष वृ.द्र.सं. गाथा वर्णानुक्रमिका २४५ शुद्ध निश्चय नय से न बंध, न मोक्ष २३० लद्र.सं गाथा वर्णानुक्रमिका २४६ द्रव्य-भाव मोक्ष जीव-स्वभाव नहीं २३० संकेत-सूची ___ २४६ द्रव्य व भाव-मोक्ष का फलभूत अनन्त उदधृत पद्य वर्णानुक्रमिका २४७-२४८ ज्ञान आदि जीव का स्वभाव २३०, २३२ / पर्यायमोक्ष एक देशशुद्धनिश्चयनय से २३० पारिभाषिक शब्द-सूची २४६-२६२ निश्चय-मोक्ष ध्येय है, ध्यान नहीं २३० उद्धत वाक्य वर्णानुक्रमिका २६२ ( Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004016
Book TitleBruhad Dravya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBramhadev
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1958
Total Pages284
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy