SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 16
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पृष्ट १६७ १८ विषय-सूची] वृहद्व्य संग्रहः [ VII विषय पृष्ठ । विषय ध्यान की सिद्धि का उपाय १६६ अनुमान, पक्ष, हेतु दृष्टान्त आदि २०६ आर्तध्यान के भेद व स्वामी हेतुदोष २०६ रौद्रध्यान के भेद व स्वामी १६७ बुद्धिहीन को शास्त्र अनुपकारी २१० धर्मध्यान के भेद तथा स्वामी णमोसिद्धाणं का ध्यान निश्चय कोकारण२११ धर्मध्यान से पुण्य, परम्परा मोक्ष १६८ सिद्धों का स्वरूप तथा सिद्ध निश्चय से चारों धर्मध्यान के लक्षण । १६८ निराकार, व्यवहार से साकारं २११, २१२ शुद्ध निश्चय से जीव कर्मफल रहित १६८ सिद्ध चरमशरीर से किंचित ऊन २१२ शुक्लध्यान के चार भेद १६६ | निश्चय पंचाचार, व्यवहार कारण २१२,२१४ पृथक्त्व-वितर्क का लक्षण व स्वामी १६६ | आचार्य-स्वरूप व निश्चय पंचाचार २१३ सूक्ष्म क्रियाप्रतिपाति का लक्षण, स्वामी २०० अंतरंग तप को बहिरंगतप कारण - २१४ व्युपरतक्रियानिवृत्ति का लक्षण, स्वामी२०० | निश्चय स्वाध्याय २१४ अध्यात्म भाषा से अन्तरंग-बहिरंग धर्म उपाध्याय का स्वरूप २१५ व शुक्लध्यान साधु का स्वरूप तथा बाह्य-आभ्यन्तर एकत्व-वितर्क का लक्षण व स्वामी २०० | मोक्षमार्ग के साधक . २१६ पिण्डस्थ आदि चार ध्यान | व्यवहार व निश्चय आराधना २१६ राग-द्वेष-मोह का लक्षण २०१ निज श्रात्मा ही पंचपरमेष्ठी रूप है। राग-द्वष कर्मजनित या जीवजनित २०१ | ध्येय, ध्याता व ध्यान का लक्षण नयविवक्षा से राग-द्वेष किस जनित २०२ | पंच-परमेष्ठी ध्येय हैं। शुद्ध निश्चय नय की अपेक्षा 'अशुद्ध निश्चय- निष्पन्न अवस्था में निज आत्मा ध्येय २१६ नय' व्यवहार | चौबीस परिग्रह २१६ पदस्थध्यान, परमेष्ठि-वाचक मंत्र २०२ / | नाना पदार्थ ध्यान करने योग्य २१६ ३५, १६, ६, ५, ४, २, १ अक्षरों के मंत्र २०३ | व्यवहार रत्नत्रय के अनुकूल निश्चय 'ओं' पद की सिद्धि २०३ रत्नत्रय सर्वपद, नामपद, आदिपद २०३, २०५ शुद्धोपयोग एक देश शुद्ध निश्चय २१६ ध्याता, ध्येय, ध्यान, ध्यानफल परम ध्यान का स्वरूप व नामांतर २१६ निश्चय ध्यान का कारण शभोपयोग २०४ तप-श्रुत-व्रत-धारी ही ध्याता २२२ अरिहंत का स्वरूप | तप-श्रुत-व्रत का लक्षण व भेद २२३ अरिहंत निश्चय से शरीर रहित ध्यान की सामग्री २२३, २२४ परमौदारिक शरीर सात धातु रहित २०६ व्रत से पुण्य, तो ध्यान का कारण कैसे २२४ १८ दोषों के नाम ... २०६. महाव्रत भी एक देश व्रत क्यों २२५ 'अरिहंत' शब्द का अर्थ २०६ त्याग का लक्षण सर्वज्ञ की सिद्धि २०६ 'महाव्रत के त्याग' का अर्थ २२५ द्रव्य-क्षेत्र-काल-भव-अन्तरित पदार्थ २०६ | निश्चय व्रत २२५ २१८ २२५ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004016
Book TitleBruhad Dravya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBramhadev
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1958
Total Pages284
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy