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________________ ७२ : आनन्द प्रवचन : भाग १२ अनेक अकार्य करता रहता है । जूआ खेलने वाला स्वजन में, परजन में, या स्वदेश में या परदेश में सर्वत्र निर्लज्ज हो जाता है और बेखटके जुआ खेलता है। जूआ खेलने वाले का विश्वास उसकी माता तक नहीं करती दूसरे लोग तो उसका विश्वास करते भी क्या ? जूआ : धर्म का शत्र जहाँ जीवन में चूत का शौक लगा, वहाँ मनुष्य नीति-अनीति, हिंसा-अहिंसा, धर्म-अधर्म का विवेक भूल जाता है। जूए के कारण बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है। हराम की कमाई खाने की आदत पड़ जाने से जुआरी अपने धन कमाने के क्रियाकलापों को केवल जूए तक ही सीमित नहीं रखता, अपितु अन्य अनैतिक साधनों को जूए के समकक्ष मानकर उन्हें भी अपनाने लगता है। एक बार दिल खुल जाने पर वह बड़े से बड़ा अपराध करने में भी नहीं चूकता। जूए के लिए पैसे की आवश्यकता पड़ने पर पहले-पहल वह अपने घर की चीजें, स्त्री के जेवर आदि चुराकर बाजार में बेचकर अपना काम चलाता है । घर बर्बाद करने के बाद अड़ौसी-पड़ौसियों पर हाथ फेरना आरम्भ कर देता है । अनेकों बार बीसियों लोगों से तरह-तरह के ढोंग रचकर ऋण के रूप में रुपये ऐंठ लेता है और फिर लौटाने का नाम ही नहीं लेता। काफी अर्से तक छुटपुट धोखा-धड़ी करते रहने के बाद तो ऐसी स्थिति हो जाती है कि ये लोग बड़े पैमाने पर ठगी, चोरी, डकैती आदि सब कुछ करने लगते हैं। जूए के इन दूरगामी परिणामों को देखते हुए इसे बुराइयों का विषबीज कहा जाए या धर्म का शत्र, कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति न होगी। जूए की लत से होने वाली हराम की कमाई की ललक ही समस्त पापों की जननी है। जिस अनुपात में यह मनोवृत्ति विकसित होगी, उसी अनुपात में जुआरी का सत्यानाश निश्चित है। वैदिक महाभारत का एक प्रसंग है-पाण्डवों के बाद युवराज परीक्षित राजसिंहासन के अधिकारी बने। वे धर्मपूर्वक शासन करने लगे। परीक्षित राजा ने सुना कि उनके राज्य में कलियुग का प्रवेश हो गया है। इससे वे क्षुब्ध हुए क्योंकि उन्होंने सुन रखा था कि कलि का प्रभाव मनुष्य को धर्म और नीति के मार्ग से पदच्युत कर पतित बना देता है, लेकिन तत्क्षण ही उन्हें आशा भी बंधी कि उन्हें अपने शौर्य-पराक्रम को परखने का अवसर मिला है। __परीक्षित नप हाथ में धनुष-बाण लेकर अपने चुने हुए सैन्याधिकारियों के साथ कलियुग को खोजने और उससे युद्ध कर उसे परास्त करने के लिए निकल पड़े । जहाँ भी वे गये वहाँ उन्हें अपने पूर्वजों तथा श्रीकृष्ण का यशोगान सुनने को मिला । उनकी अचिन्त्य शक्ति के प्रति कृतज्ञता और श्रद्धा से उनका हृदय नत हो उठता था। परीक्षित राजा गाँव-गाँव, नगर-नगर और वन-वन में घूमते फिरे लेकिन कहीं भी उन्हें कलि न मिला। एक जगह गाय और बैल कुछ बातें कर रहे थे। बैल के Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004015
Book TitleAnand Pravachan Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1981
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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