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७० : आनन्द प्रवचन : भाग १२
सम्पत्ति बर्बाद कर दी । प्रायः जीता हुआ जुआरी अपने आपको समाज की नजरों में समृद्ध और सम्पन्न दिखाने के लिये इस प्रकार से फिजूलखर्ची करता है । वसुनन्दि श्रावकाचार में ठीक ही कहा है
अक्खेहि णरो रहिओ ण मुणइ सेसिंदिएहिं वेएइ ।
जूयंधो ण य केणवि जाणइ संपुण्णकरणो वि ॥
अर्थात् — आँखों से रहित मनुष्य यद्यपि देख नहीं सकता, तथापि शेष इन्द्रियों से तो जानता है । मगर जुआरी नेवादि समग्र इन्द्रियाँ होने पर भी द्यूत - क्रीडा में सर्वांशत: अन्धा हो जाता है ।
अनैतिक तरीकों से कमाया हुआ धन धार्मिक विधान के विपरीत है, इसलिए वह फिजूलखर्ची में तो जाता ही है, साथ ही दुष्कर्मोदय से या आधिदैविक प्रकोप की वजह से बीमारी, मुकदमा, शत्रुता, किसी आकस्मिक हानि, कुटुम्बीजनों द्वारा हड़पे जाने, या बैंक, आसामी आदि के फेल हो जाने या किसी चोर - डाकू या जबर्दस्त आदमी द्वारा छीन लेने, लूट लेने या कर्ज लेकर खा जाने से अन्त में वह धन ठिकाने लग जाता है । यह तो निश्चित है कि जूए या सट्टे जैसे अनैतिक तरीके से कमाया हुआ धन बाढ़ के पानी की तरह अधिक दिन टिकता नहीं, और न वह फलदायी ही होता है । अगर ऐसा हुआ होता तो चोर, उठाईगीरे, जेबकतरे, जुआरी आदि ये सब कभी के लखपती - करोड़पती बन गये होते । पर वास्तविकता इसके बिल्कुल विपरीत है । ये लोग हमेशा ही तंगी एवं अभाव की स्थिति महसूस करते हैं । और तो और, कई बार फाके करने तक की नौबत आ जाती है । सारांश यह है कि अनैतिक तरीकों से कमाया हुआ पैसा कभी फलदायी नहीं होता । वह सदा इसी प्रकार बर्बाद होता रहा है, आगे भी होता रहेगा ।
मैं एक ऐसे परिवार को जानता हूँ जिसके यहाँ पहले लक्ष्मी अठखेलियाँ करती थी, परन्तु जब से उसे जूए या सट्टे का चस्का लगा, तब से बर्बाद होना शुरू हो गया और अन्त में वह दर-दर का मोहताज हो गया । रोटी के भी लाले पड़ गये । फिर भी अपनी पुरानी द्यूत-क्रीड़ा की मनोवृत्ति उसने नहीं छोड़ी। किसी को भी जरा- से प्रलोभन का सब्जबाग दिखाकर वह रुपये उधार ले लेता, फिर जूआ खेलता, हारता और अन्त में वह ऋण नहीं चुकाया जाता था । इस प्रकार जूए से अर्थनाश और मनस्ताप दोनों ही होते हैं ।
अतः बेकारी और बेरोजगारी की समस्या का हल जूआ कतई नहीं है, बल्कि जूए से बेकारी निवारण तो क्या होगी, मनुष्य ही बेकार, निकम्मा, निठल्ला, और हरामखोर बन जाता है । जूआ खेलने वाला आलसी बनकर पड़ा रहता है । उसे हाथ-पैर से श्रम करके खाने में लज्जा महसूस होती है । वह बाबू बनकर
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