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६८ : आनन्द प्रवचन : भाग १२
जूए के मूल में मनोवृत्ति
यद्यपि आज जूए (Gambling) पर सरकारी प्रतिबन्ध है। जुआ खेलना कानूनन अपराध है, पकड़े जाने पर इसमें भी राजदण्ड मिलता है । इसमें सभी खेलने वालों का स्वार्थ निहित होता है । इसलिए परस्पर विरोध न होने से झटपट कानून की पकड़ में आना मुश्किल होता । यदि पकड़े भी गये तो थोड़ी-बहुत रिश्वत से या थोड़े-से जुर्माने से पिण्ड छूट जाता है । इस प्रकार चोरी-छिपे प्रायः हर जगह एक या दूसरे रूप में यह बुराई समाज में दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। मुफ्त में, बहुत जल्दी, ढेरों रुपये मिलने की हवस के शिकार लोग एक या दूसरे प्रकार से जूए पर दाँव लगाते देखे जा सकते हैं ।
सभी प्रकार के जूओं के मूल में एक ही मनोवृत्ति काम करती है और वह हैअल्प अवधि में, बिना परिश्रम के अधिक से अधिक धन प्राप्त करना ।
आज इस मनोवृत्ति के लोग यह भी कहते देखे जाते हैं कि "नौकरी या छोटेमोटे धंधे में सीमित आय के कारण घर खर्च चलना भी कठिन हो जाता है, फिर आज नौकरी - उच्च वेतनमान की स्थायी नौकरी हर किसी को कहाँ मिलती है । जनसंख्या
वृद्धि के साथ-साथ शिक्षित बेरोजगार इतने बढ़ते जा रहे हैं कि सबको आजीविका के पर्याप्त साधन नहीं मिलते। मेहनत मजदूरी करके सीमित आय से अपना गुजारा चलाना बिना परिश्रम के बैठे-बैठे खाने वालों के लिए कठिन है । निर्धनता एव अयोग्यता के कारण सभी लोग व्यापार-धंधा कर नहीं सकते । ऐसी स्थिति में जूआ ही हमारे लिए वरदान -रूप व्यवसाय है, इनमें न तो अधिक पूँजी चाहिए, और न ही व्यावसायिक अनुभव एवं बौद्धिक क्षमता अपेक्षित है । इसलिए बहुसंख्यक लोगों की बेकारी और बेरोजगारी मिटाने का काम जुआ ही तो कर सकता है । ऐसी स्थिति में हम धनोपार्जन के इस सदाबहार स्रोत को क्यों नहीं अपनाएँ ?” जुआरी में इतनी दूरदर्शिता कहाँ ?
परन्तु जूआ खेलने या दाँव लगाने वाले लोगों में दूरदर्शिता से सोचने की बुद्धि नहीं होती कि क्या इस मुफ्तखोरी बढ़ाने वाले व्यवसाय से मेरा, मेरे परिवार का, मेरे राष्ट्र और समाज के जीवनधन का विनाश नहीं होगा ? क्या जूए से बिना श्रम किये मुफ्त में मिलने वाले धन से मेरी, मेरे परिवार एवं जाति के लोगों की बुद्धि भ्रष्ट नहीं होगी ? संतान पर मुफ्तखोरी के कुसंस्कार एक बार पड़ने पर फिर उनसे श्रम करके जीवन निर्वाह करना क्या कठिन नहीं हो जाएगा। क्या यह अनैतिक व्यवसाय मेरे और मेरे परिवार के पूर्वजों से प्राप्त धर्म और नीति के सुसंस्कारों को मटियामेट नहीं कर देगा ? अथवा क्या यह धंधा मेरी एवं पूर्वजों की कमाई हुई सम्पत्तिको स्वाहा तो नहीं कर बैठेगा ?
जूए के व्यवसाय से लोग भले ही थोड़ा-सा लाभ प्राप्त कर लें, परन्तु अधिकतर ऐसे परिवार बर्बाद होते देखे गये हैं, और यह भी देखा गया है कि जुआरी में दूरदर्शिता से अपने हानि-लाभ को-आर्थिक हानि-लाभ ही नहीं, धार्मिक, नैतिक
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