________________
सर्वसुखों में धर्मसुख उत्कृष्ट : ६३
स्थितियां आती हैं, प्रतिकूल व्यक्तियों से वास्ता पड़ता है, उनके आचार-विचार, स्वभाव, रुचि आदि में अन्तर हुआ करता है, परन्तु धर्मसुख के इच्छुक को इन सब स्थितियों और व्यक्तियों में न तो घबराना चाहिए, न टकराना चाहिए, सहनशील बनकर सबको शान्ति और धैर्यपूर्वक समभाव से सहन करना चाहिए । आचार-विचारों आदि में मतभेद होते हुए भी द्वेषभाव नहीं रखना चाहिए, न ही अहंकार प्रकट करना चाहिए । दुराचारी, अनाचारी आदि से घृणा न करके उनके प्रति चिकित्सक की भावना रखना चाहिए । 'रोग मिटाना है, रोगी को नहीं' यही धैर्यधर सुधारक की भावना होनी चाहिए । इस प्रकार की सहिष्णुता से जीवन में स्थायी सुख-शान्ति प्राप्त हो सकेगी । धर्मसुख के ये ही चार प्रमुख आधार हैं, जो सर्वश्रेष्ठ सुखलाभ कराते हैं । इसीलिए गौतम महर्षि ने कहा है-
" सव्वं सुहं धम्मसुहं जिणाइ ।"
धर्मसुख सब सुखों में श्रेष्ठ है ।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org