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५० : आनन्द प्रवचन : भाग १२.
इनसे मुझे सुख मिलता है । आज उसके पिता उससे प्रसन्न हैं, वह सुखी मानता है अपने को। कल वे उससे अप्रसन्न या रुष्ट हो गये तो उसके सुख के महल ढह जाएँगे।
मानलो, एक व्यक्ति की पत्नी सुन्दर है, आकर्षक है, प्रसन्नमुखी है, उसकी सेवा करती है, वह उसे जब भी देखता है, प्रसन्नता से सराबोर हो जाता है, प्राणों की तरह उससे प्यार करता है, उसका हृदय उससे बात करते हुए प्रसन्नता से खिल उठता है। सामान्यतः उस व्यक्ति के सुख का कारण उसकी पत्नी का रूपवती, प्रसन्नमुखी, सेवाभावी होना समझा जाता है, लेकिन वास्तविकता यह नहीं है, एक दिन ऐसा आ सकता है, जब उसका रूप किसी रोग, वृद्धावस्था या अन्य किसी कारण से बिगड़ गया, वह विद्रूप हो गयी तो उस व्यक्ति की प्रसन्नता समाप्त हो जाएगी, सुख का स्वप्न भंग हो जाएगा। मानलो, वह स्त्री किसी बात पर पति से नाराज होकर बिगड़ जाये, या बात-बात में लड़ाई-झगड़ा करने लग जाये तो क्या उसके प्रति पति की वही आकर्षण-दृष्टि या सुख की मान्यता बनी रहेगी ? या वही सुन्दर तथा सुस्वभाववाली पत्नी धृष्ट और अनाचारी बन जाए, अपना स्वभाव बिगाड़ ले तो भी क्या वह अपने पति के लिए सुख का कारण बनी रहेगी ? अवश्य ही सारा रूप-रंग यथावत् रहने पर भी अब उसे देखकर या उससे बोलकर पति को वह आनन्द नहीं आएगा। उसकी प्रसन्नता और सुख की मान्यता खत्म हो जाएगी जो पहले उसके सम्पर्क में मान रखी थी।
इस विकर्षण का कारण है-पति-पत्नी के बीच आत्मीय भाव की कमी। नारी का स्वभाव-परिवर्तन ही पुरुष के अपनेपन को समाप्त कर देता है।
इसी प्रकार बच्चों के प्रति भी सुख और दुःख या प्रसन्नता-अप्रसन्नता की बात समझी जा सकती है । दूसरों के बच्चे चाहे जितने सुन्दर, शिष्ट और शालीन क्यों न हों, उन्हें देखकर वह आनन्द और उल्लास नहीं प्राप्त होता, जो आनन्द और सुख अपने बच्चे को देखकर मिलता है, चाहे फिर अपने बच्चे कुरूप और शरारती ही क्यों न हों । यह अन्तर इसलिए होता है कि अपने बच्चों के साथ अपनापन जुड़ा रहता है दूसरे बच्चों के साथ नहीं। निष्कर्ष यह है कि अपनेपन में मनुष्य का सुख टिका हुआ है, किसी व्यक्ति-विशेष या वस्तु-विशेष में नहीं।
जो लड़का सुन्दर सलौना और शिष्ट लगता था, वही बड़ा होने पर उद्दण्ड, शरारती, दुष्ट, जुआरी, व्यभिचारी या अविनीत हो जाता है तो सुख के बदले दुःख का कारण बन जाता है। इसी प्रकार आज किसी के स्त्री-बच्चे स्वस्थ और प्रसन्न हैं तो वह अपने घर में स्वर्ग का सुख समझता है किन्तु उनके बीमार हो जाने पर नारकीय दुःख मानने लगेगा । उसकी आत्मा चीत्कार कर उठेगी कि इन वस्तुओं में सुख नहीं है।
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