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धर्मबल : समस्त बलों में श्रेष्ठ : ४७
देवयानी को वह सहोदर भगिनी के समान मानता आया था। इतनी अखण्ड चारित्रनिष्ठा कच में थी कि उसने अपनी सीखी हुई विद्या का लुप्त हो जाना स्वीकार किया मगर देवयानी के साथ प्रणय-सूत्र में बँधना नहीं । यह धर्मबल का ही प्रभाव था।
भारतीय इतिहास में ऐसे सैकड़ों उदाहरण विद्यमान हैं, जिन्होंने अन्य सब बलों को गौण करके एकमात्र धर्मबल को सुरक्षित रखा। अर्जुन जब ब्रह्मचर्यपालन करता हुआ तपस्या कर रहा था। इन्द्र उसका ब्रह्मचर्यपूर्वक तप देख भयभीत हुआ कि अर्जुन मेरा राज्य न छीन ले । इसलिए रम्भा नामक अप्सरा को छल-बल से अर्जुन का ब्रह्मचर्य खण्डित करके उसे तपोभ्रष्ट करने भेजा। रम्भा ने सभी तरह के प्रयत्न किए उसे डिगाने के किन्तु वह अर्जुन को ब्रह्मचर्य भ्रष्ट एवं तपोभ्रष्ट न कर सकी। रम्भा का आसुरी बल अर्जुन के चारित्रनिष्ठा रूप धर्मबल के आगे परास्त हो गया। इसीलिए महर्षि गौतम ने अनुभूतिपूर्ण जीवनसूत्र में कह दिया
सव्वं बलं धम्मबलं जिणाइ।' धर्मबल सभी बलों में श्रेष्ठ है।
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