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________________ ४६ : आनन्द प्रवचन : भाग १२ ___ श्रीकृष्ण उस समय बाहर गये थे। द्वारिका लौटे और पाण्डवों के वनवास का समाचार सुना तो वे रथारूढ़ होकर खाण्डव वन गये, जहाँ द्रौपदी सहित पांचों पाण्डव पर्णकुटी बनाकर रहते थे। श्रीकृष्ण ने द्रौपदी, भीम, अर्जुन, आदि सबके मुंह से दारुण कष्ट-कथा सुनकर समाधान किया-"धर्म-पालन के लिये समभाव और धैर्य से सहे हुए कष्ट के पीछे तुम्हारा और जगत् का कल्याण छिया है। उसे समझो। इससे तुम्हारे धर्म पर श्रद्धा-विश्वास की शक्ति में वृद्धि हुई है, दुर्योधन के पाप का घड़ा भर गया है, वह फूटना अनिवार्य है । अब तक वह गुप्त था, उस दिन वह प्रकट हो गया। सभी जान गये कि दुर्योधन कितना अन्यायी और पापी है । अब वह तुम्हारी निन्दा फैलाने में असमर्थ हो गया। धर्म पर विश्वास के कारण तुम्हें प्रसन्न रहना चाहिए।" इस वक्तव्य ने पांचों पांडवों का मनःसमाधान कर दिया कि-दुर्योधन राजमहल की रगड़ से क्षीण हो रहा है, जबकि पाण्डव वन में विकसित और बलवान हो रहे हैं। वन में धैर्यपूर्वक धर्मशक्ति पर विश्वास रखकर तप करने से अवश्य ही शुभ परिणाम आयेगा। यह है-धर्मशक्ति पर अखण्ड विश्वास का ज्वलन्त उदाहरण ! धर्मबल : श्रद्धा-भक्ति के रूप में-धर्म में महान शक्ति है। उसकी उपलब्धि सबको नहीं हो पाती, कोई विरला ही उसे पाता है। जिसमें धर्म के प्रति प्रगाढ़ श्रद्धाभाव और हिमाचल-सी अचलता है, वही उस गूढ़तर तत्त्व को पाता है । हिरण्यकश्यप ने जब धर्म पर और परमात्मा पर दृढ़ श्रद्धा-भक्तिशील प्रह्लाद को अपना शत्रु मानकर उसे तरह-तरह से यातना देकर नष्ट करना चाहा था, तब कौन-सी शक्ति प्रह्लाद में थी, जिसने हिरण्यकश्यप को परास्त कर दिया था ? । वही धर्म की महाशक्ति थी, जिसके प्रताप से प्रह्लाद का बाल भी बांका न हुआ और हिरण्यकश्यप का सत्ताबल प्रह्लाद के धर्मबल के आगे झुक गया। हिरण्यकश्यप ने अपनी प्रतिष्ठा को कायम रखने के लिए प्रह्लाद को उखाड़ना चाहा, मगर उसका धर्मबल इतना प्रबल था कि उसके सामने अन्य सभी बल परास्त हो गये ! बन्धुओ ! इसी तरह धर्मबल चारित्रनिष्ठा के रूप में भी आता है । जैनग्रन्थों में विजय सेठ और विजया सेठानी के पति-पत्नी होते हुए भी अखण्ड ब्रह्मचर्य के आजीवन पालन का उदाहरण चारित्रनिष्ठा का ज्वलन्त उदाहरण है। बिना धर्मबल के चारित्रनिष्ठा कैसे आ सकती थी? दोनों में धर्मबल कूट-कूटकर भरा था, तभी तो एक के कृष्णपक्ष में ब्रह्मचर्यपालन की प्रतिज्ञा थी, जबकि दूसरे के शुक्लपक्ष में थी। पत्नी ने पति से साग्रह अनुरोध भी किया कि "आप दूसरा विवाह कर लें, ताकि सांसारिक सुखोपभोग कर सकें।" परन्तु धर्मबल से ओतप्रोत विजय सेठ ने स्पष्ट इन्कार कर दिया। ___ मैंने एक पौराणिक उदाहरण में बताया था-कच ने अपने गुरुदेव की कन्या देवयानी के द्वारा विवाहसूत्र में बंध जाने के प्रस्ताव को इस कारण ठुकरा दिया कि Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004015
Book TitleAnand Pravachan Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1981
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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