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धर्मबल : समस्त बलों में श्रेष्ठ : ४३
कोई उसके पास न गया । औरत चिल्लाये जा रही थी। तभी एक सहृदय, हृष्टपुष्ट शरीर और सौम्य मुखमण्डल वाला ऊँचा नौजवान उसके पास आकर पूछने लगा"मांजी ! मैं तुम्हारा बेटा हूँ। तुम क्यों इस तरह रो रही हो? क्या घटना तुम्हारे साथ घटी है ? मुझे सेवा बताओ।"
__ सान्त्वना के ये बोल सुनकर महिला को तनिक ढाढस बंधा। एक करुण कराह के साथ वह बोली--"पुत्तर ! कुछ दुष्ट मेरी जवान बेटी को भरे-बाजार से उठा ले गए । वे कह रहे थे-हम उससे ब्याह करेंगे। है कोई माई का लाल, जो मेरी बेटी को उन गुडों के चंगुल से छुड़ा लाए।"
भीड़ जुटती जा रही थी। कोई उस महिला को पुलिस के पास जाने की सलाह दे रहा था। कोई कह रहा था--"गम खाकर बैठ जाओ, माई ! अब कुछ नहीं हो सकेगा। भला कौन इसके लिए हथियारबंद गुडों से लड़ाई मोल लेगा।"
महिला चारों ओर असहाय भाव से देखकर रो पड़ी-"क्या तुम सब के जीते-जी भले घरों की बहू-बेटियों के साथ ऐसा ही होगा ?"
तभी वह युवक जो अभी-अभी महिला के साथ बातें कर रहा था, बिजली की सी गति से आकर वहाँ खड़ा हो गया और एक गोरी सलौनी युवती को अपने कंधे पर से उतार कर उस महिला के आगे खड़ा करते हुए बोला-'यही है न माँ ! तुम्हारी बेटी ?" महिला अचानक यह अनहोना दृश्य देखकर क्षणभर स्तब्ध रह गई। फिर एकदम अपनी बेटी से लिपट गई।
उसके हृदय से आशीर्वाद बरस पड़े-"बेटा ! हजारों वर्ष जीते रहो।" उसने कहा- "मांजी ! बहन को छुड़ाना तो मेरा कर्तव्य था।" और हाल बाजार की जामा मस्जिद से हजारों की सशस्त्र भीड़ में से तरुणी को बचा लाने वाला वह युवक खड़ा मुस्करा रहा था। उसी दिन से उस लम्बे, सुदृढ़ शरीर एवं अपूर्व साहस के धनी युवक सांईदास का नाम 'बिजली पहलवान' पड़ गया । आगे चलकर वही 'दानवीर लाला सांईदास बिजली पहलवान' कहलाया। 'अमृतसर ट्रांसपोर्ट कम्पनी' की नींव इसी धर्मिष्ठ युवक ने डाली। गरीबों व दीन-दुखियों को वह हर तरह से सहायता देता था। पौरुष, सच्चरित्र, दया, औदार्य और धर्मबल का अपूर्व संगम लाला सांईदास बिजली पहलवान में हुआ था। लाला सांईदास में धर्मबल इसलिए था, कि धर्म का प्रथम मूलतत्त्व त्याग उसमें कूट-कूटकर भरा था। पाश्चात्य विचारक Froude (फाउडे) ने ठीक ही कहा है
Sacrifice is the first element of religion' 'त्याग धर्म का प्रथम मूल तत्त्व है।'
लाला सांईदास में सहसा इतना आत्मबल कहाँ से आया ? इस धर्मबल के कारण ही तो आया था।
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