SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 59
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३२ : आनन्द प्रवचन : भाग १२ चित्रकार की पुत्री अनंगसुन्दरी का विवाह शत्रु मर्दन राजा के साथ हो गया। अनंगसुन्दरी में एक विशेषता थी कि वह प्रतिदिन रोचक, प्रेरणादायक कथाएँ सुनाती थी। कथा सुनाने की कला में वह अत्यन्त कुशल थी, इस कारण राजा भी प्रभावित होकर उसी के महल में आता था। राजा की अत्यन्त प्रीति अनंगसुन्दरी पर होने के कारण दूसरी रानियाँ उससे ईर्ष्या करने लगीं और छिद्र हूँढने लगी कि किसी तरह से राजा का मन इससे हटाया जाये। अनंगसुन्दरी प्रतिदिन नियमानुसार अपना पूर्व (चित्रकार-पुत्री का) वेष पहनकर एकान्त कमरे में आत्मनिन्दना करती थी-"हे आत्मन् ! तू तो वही चित्रकार की पुत्री है । भले ही आज तू राजा की रानी है, परन्तु तेरा असली वेष तो पिता द्वारा दी हुई यह मोटी साड़ी है। रेशमी वस्त्रादि तो राजा के दिये हए हैं। ये गहने भी राजा के हैं। राजा के तो उच्चकुल की अनेक रानियां हैं। उन्हें छोड़कर राजा तुझे आदर देता है, इस कारण तुझ में अहंकार न आ जाए।' अनंगसुन्दरी की सौतों ने राजा के कान भर दिये । परन्तु राजा ने जब अनंगसुन्दरी को स्वयं अपनी आँखों से आत्मनिन्दना करते देखा तो बहुत ही प्रसन्न हुआ ! राजा ने प्रसन्न होकर अनंगसुन्दरी को पटरानी बना दिया। यह था आत्मनिन्दात्मक धर्मकथा का अद्भुत चमत्कार ! बन्धुओ ! इन सभी दृष्टियों से महर्षि गौतम ने इस जीवनसूत्र में कह दिया सव्वा कहा धम्मकहा जिणाइ । धर्मकथा सब कथाओं में उत्तम है। 000 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004015
Book TitleAnand Pravachan Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1981
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy