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धर्मकथा : सब कथाओं में उत्कृष्ट : ३१
वास्तव में धर्मकथा से ऐसे लोग लाभ नहीं उठा सकते, जो इन दसों में से कोई हों। कदाचित् ऐसे लोग शर्माशर्मी, देखा-देखी, दूसरों के दवाब, लिहाज या मुलाहिजे में आकर अथवा समाज में अपनी प्रतिष्ठा बरकरार रखने के लिए, दिखावे के लिए धर्मकथा-श्रवण करने बैठ भी जाएँ तो भी उनके पल्ले कुछ नहीं पड़ता, क्योंकि उनका दिल-दिमाग कहीं और होता है, भले ही उनका शरीर चाहे वहाँ बैठा हो । धर्मकथा से लाभ न उठा पाने के कारण वे अपने जीवन की उलझी हुई गुत्थियों को सुलझा नहीं पाते, जीवन की अटपटी घाटियों को सुख-शान्तिपूर्वक पार नहीं कर पाते । पं० आशाधरजी ने धर्मकथा सुनने के अधिकारी का लक्षण बताते हुए कहा है
भव्यः, किं कुशलं ममेति विमृशन् दुःखाद् भृशं भीतवान । सौख्यैषी, श्रवणादि बुद्धिविभवः, श्रुत्वा विचार्य स्फुटम् ॥ धर्म शर्मकर दयागुणमयं युक्त्यागमाभ्यां स्थितं ।
गृह्णन् धर्मकथां श्रुतावधिकृतः शास्यो निरस्ताग्रहः॥
धर्मकथा सुनने का अधिकारी वह है, जो भव्य हो, मेरा हित किस में है ? इस प्रकार का विचार करने वाला हो, जन्म-मरण के दुःखों से अत्यन्त भयभीत हो, वास्तविक सुख का अभिलाषी हो, श्रवणादि बुद्धि का वैभव हो, युक्ति और आगम से सिद्ध दयागुणमय, सुखकारक धर्म को सुनता हो, तत्पश्चात् स्पष्ट विचार करता हो, अनाग्रही हो, और अनुशासन-मर्यादा में चलता हो ।
जो व्यक्ति अभव्य है, रात-दिन महारम्भ और महापरिग्रह में रचा-पचा रहता है, सांसारिक-वैषयिक सुखों को सुख मानता है, जन्म-मरणरूप संसार के दु.खों से भयभीत नहीं है, धर्मश्रवणादि की रुचि न हो, श्रवण-मनन करने की बुद्धि न हो वह व्यक्ति धर्मकथा सुनने का अधिकारी कैसे हो सकता है। स्थानांगसूत्र में धर्म (कथा) श्रवण न कर सकने के दो कारण बताये हैं
"दोहि ठाणेहि केवलिपण्णत्त धम्मं न लभेज्ज स्वणयाएमहारंभेण चेव महापरिग्गहेण चेव।"
दो कारणों से मनुष्य केवलिप्रज्ञप्त धर्म का श्रवण नहीं कर पाता-(१) महारम्भ के कारण और (२) महापरिग्रह के कारण। अमृत अपने सामने पड़ा हो, लेकिन कोई व्यक्ति अमृत का पान न कर सके तो इसमें अमृत का कोई दोष नहीं है, इससे अमृत का प्रभाव कम नहीं हो जाता । इसी प्रकार कोई व्यक्ति धर्मकथा जैसी पवित्र वस्तु को ग्रहण-श्रवण नहीं कर पाता, इसमें न तो धर्मकथा का कोई दोष है, और न ही उसका प्रभाव कम हो जाता है।
धर्मकथा का जीवन पर प्रभाव और चमत्कार स्वाध्याय के ५ अंगों में धर्मकथा पाँचवाँ अंग है। धर्मकथा के द्वारा मनुष्य अपने जीवन का सुन्दर निर्माण कर सकता है।
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