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________________ २८ : आनन्द प्रवचन : भाग १२ युवतियाँ सुसज्जित खड़ी थी। रोहिणेय को वहाँ एक पलंग पर सुला दिया गया। जब रोहिणेय होश में आया तो उसे कहा गया--"आप स्वर्ग में आए हैं । हम देव और देवांगनाएँ आपकी सेवा में हाजिर हैं । परन्तु स्वर्ग में आने वाले देव को सर्वप्रथम यह पूछा जाता है कि वह कौन है, कहाँ का है ? उसने क्या-क्या सुकर्म-दुष्कर्म किये हैं ?" रोहिणेय ने ज्यों ही उन नकली देवियों की ओर देखा उसे भगवान महावीर के वे ४ वचन स्मरण हो आये। उसने देखा कि ये अपने आपको देव-देवी कहते हैं, परन्तु भगवान महावीर ने तो कहा था-'देवों के शरीर में पसीना नहीं आता', इनके शरीर में पसीना आ रहा है। 'देवों की फूलमालाएँ कुम्हलाती नहीं', इनकी तो पुष्पमालाएँ कुम्हला रही हैं । 'देवों की पलकें नहीं झपती' पर इनकी तो पलकें झप रही हैं। और 'देवों के पैर जमीन से अधर रहते हैं', इनके पैर तो जमीन पर टिके हुए हैं। इसमें मुझे अभयकुमार की चाल मालूम होती है । अतः उसने अभयकुमार आदि के समक्ष पहले जो अपने को व्यापारी बतलाया था तथा नाम, गाँव का नाम-पता आदि बताया था, वही बताया। फलतः अभयकुमार उसे गिरफ्तार न कर सका। जब अभयकुमार ने उसे मुक्त कर दिया और मित्र के नाते आत्मीयतापूर्वक बात की तो उसने स्वयं स्वीकार कर लिया कि "मैं ही रोहिणेय हूँ। मैं आपके समक्ष विभिन्न रूपों में आता रहा पर आप पकड़ न सके । अब आप मुझे अगर भगवान् महावीर जैसे नि:स्पृह, सर्वदर्शी महापुरुष के समक्ष ले चलें तो मैं उनके समक्ष अपने सारे अपराध खोल कर रख दूंगा।" अभयकुमार उसका हृदय बदला हुआ देखकर भगवान महावीर की सेवा में ले पहुँचा। भगवान महावीर ने उसे तथा परिषद को धर्म देशना दी। फलतः रोहिणेथ को संसार से विरक्ति हो गई। उसने भगवान महावीर के समक्ष अपने सारे अपराध मंजूर कर लिये और शुद्ध सरल हृदय से पश्चात्तापपूर्वक आत्मालोचना की। तत्पश्चात मुनि-दीक्षा ले ली। अब रोहिणेय चोर मिटकर वह रोहिणेय मुनि बन गया । श्रेणिक राजा एवं अभयकुमार जो उसे गिरफ्तार करके भारी दण्ड देना चाहते थे, अब भगवान् महावीर की धर्मकथा के प्रताप से वन्दनीय रोहिणेय मुनि बन गया। अतः दोनों उसके चरणों में वन्दना करने लगे। यह है-धर्मकथा का हृदयस्पर्शी प्रभाव और महत्त्व ! धर्मकथा-श्रवण को प्राथमिकता जो व्यक्ति धनादि के लाभ से धर्मकथा को अधिक लाभपूर्ण समझते हैं, वे धर्मकथा को ही प्राथमिकता देते हैं, वे सांसारिक अन्य लाभों को गौण कर देते हैं । वे समझते हैं कि धर्मकथा से जीवन अमर हो जाता है, जीवन को अमर बनाने की प्रेरणा धर्मकथा से मिलती है। भरत चक्रवर्ती अत्यन्त वैभवशाली था। चक्रवर्ती पद के कारण सत्ता भी उसके हाथ में थी। परन्तु वह वैभव और सत्ता से अलिप्त रहता था। __ एक बार भरत चक्रवर्ती सिंहासन पर बैठे थे, तभी उन्हें एक साथ तीन शुभ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004015
Book TitleAnand Pravachan Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1981
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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