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________________ २४ : आनन्द प्रवचन : भाग १२ पेशाब करना, कोट-पेंट-नेकटाई, हैट आदि पोशाक पहनना आदि, उन्हें ग्रहण कर लिया। यात्रा-कथा का वर्णन पढ़कर प्रायः अनुकरणशील लोग देश-विदेश के लोगों के दुर्गुणों को अपना लेते हैं, सद्गुणों को नहीं अपनाते । इसी प्रकार कई कथाएँ रोचक तो होती हैं, पर उनमें से ग्रहण करने लायक हितोपदेश बहुत ही अल्प होता है । ___ कई सामाजिक उपन्यास भी होते हैं, समाज-सेवा की प्रेरणा उनसे मिलती है, पर वे इने-गिने ही होते हैं, और इने-गिने बिरले लोग ही उन्हें पढ़-सुनकर समाज-सेवा की प्रेरणा ग्रहण करते हैं। अधिकांश लोग तो अपनी रुचि का पोषण करने के लिये ऐसे उपन्यास पढ़ते हैं, कुछ लोग समय काटने के लिये ऐसा साहित्य पढ़ते हैं। अक्सर देखा गया है कि भारत के लोग ऐसे कथा साहित्य को पढ़कर प्रायः अकर्मण्य, परोपजीवी और आलसी हो गये हैं। उन्हें यह भान ही नहीं होता कि समय कितना अमूल्य है ? इसका कैसे सदुपयोग करना चाहिये ? वे प्रायः अपना समय गपशप, निन्दा-चुगली, लड़ाई-झगड़ा या किसी दुर्व्यसन मे अथवा ऐसे गन्दे साहित्य के पढ़ने में खर्च कर डालते हैं, आरोग्यवृद्धि, मनोरंजन तथा लोकोपकार की दृष्टि से विचार करके उस समय का सदुपयोग करना नहीं जानते। निष्कर्ष यह है कि पूर्वोक्त चारों विकथाओं के अतिरिक्त प्रेम-कथा, साहसिककथा, रहस्य-कथा, भूत-कथा, शिकार-कथा, यात्रा-कथा आदि विभिन्न कथाओं से भी मनुष्य का कल्याण नहीं होता, न ही कोई हितकर प्रेरणा मिल पाती है। धर्मकथा इन सब कथाओं में श्रेष्ठ कथा है। धर्मकथा सरल और रोचक तो होती ही है, साथ ही उससे जीवन-कल्याण की प्रेरणा भी मिलती है। धर्मकथा का श्रवण एवं कथन माता के स्तनपान की तरह हितकारी और जीवन को स्वस्थ, स्फूर्तिमान एवं धर्मरसिक बनाता है। धर्मकथा क्या है, क्या नहीं? ___धर्मकथा वह है, जिस कथा में या जिस वर्णन में धर्म-शुद्धधर्म का पुट हो । जो कथा पढ़ने-सुनने वाले को शुद्धधर्म की प्रेरणा देती हो, जिस कथा को पढ़ने-सुनने से धर्म की मर्यादा में रहकर अर्थ-काम-सेवन का गुर मिल जाता है, जो कथा मनुष्य को दुराचार, दुर्व्यसन एवं दुर्नीति तथा पाप-परायणता के मार्ग से हटाकर अच्छी आदतों, सुनीति एवं धर्मपरायणता के सन्मार्ग पर मनुष्य को चढ़ा देती हो, उसे भी धर्मकथा कहते हैं। जिस कथा के कहने-सुनने या पढ़ने से मनुष्य को जुआ, चोरी, मांसाहार, मद्यपान, शिकार, वेश्यागमन एवं परस्त्रीगमन आदि दुर्व्यसनों को सर्वथा तिलांजलि देने की प्रेरणा मिलती हो, वह भी धर्मकथा की कोटि में है। जिस कथा में धार्मिक महापुरुषों का जीवन चरित्र हो, जिसमें शील और सतीत्व की परम आराधक महासतियों की जीवनी हो, जिसमें धर्मवीर पुरुषों की घटनाओं का आलेखन हो, ऐसे लोगों को जीवन गाथाएँ भी अंकित हों, जो पतित Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004015
Book TitleAnand Pravachan Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1981
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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