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धर्मकथा : सब कथाओं में उत्कृष्ट : २३
वेष बनाया, वैसे ही साधन लिये। वैसे ही दूकान में चोरी करने के लिए दरवाजा तोड़ने का प्रयत्न किया, पर बेचारा नौसिखिया था, अतः दरवाजा टूटा नहीं । खटखट की आवाज से लोगों की नींद उड़ गई और वह रंगे हाथों पकड़ लिया गया। यह है दुःसाहसिक नवल-कथा का दुष्परिणाम ।
अधिकांश नवल-कथाएँ प्रेमकथाएँ होती हैं। उनमें प्रेमी-प्रेमिका की दुःखान्त कथाएँ होती हैं, असफल प्रेम की कथाएँ पढ़ने-कहने से युवक चरित्रभ्रष्ट हो ही जाता है। किसी कथा के नायक की नकल करके वह भी असफल प्रेमी या प्रेमिका बनकर अपने जीवन का दुःखद अन्त कर डालता है।
इसी प्रकार कई रहस्य-कथाएँ होती हैं, जिनका कोई भी शुभ परिणाम जीवन पर नहीं होता, बल्कि घड़ी-दो घड़ी के लिए मनुष्य आश्चर्य में डूब जाता है। कथा का कोई भी सिरा हाथ नहीं आता।
__कई भूत-प्रेत की कहानियाँ, झूठे किस्से तथा मनगढंत कथाएँ पढ़ते या कहते-सुनते हैं, उनका मस्तिष्क पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। भय का भूत उनके मस्तिष्क में इतनी तेजी से तथा सुदृढ़ रूप से घुस जाता है कि वह आजीवन नहीं निकलता। इसीलिए घर में बढ़ी-बूढ़ी, दादी या नानी प्राचीनकाल में बच्चों को ऐसी कहानियाँ नहीं सुनाती थीं जिनसे बच्चे भयभीत हो जाएं, बच्चों के कोमल दिमाग में भय घुस जाये।
___ इसी प्रकार कई लोग शिकार-कथा कहते-सुनते या पढ़ते हैं, उसमें शिकार का साहसिक वर्णन होता है । वर्णन इतना रोचक ढंग से होता है, कि पढ़ने-सुनने वाला उसमें तन्मय हो जाता है, उसके मन-मस्तिष्क पर उस शिकार-कथा के वर्णन की तरह ही शिकार करने की लालसा जागृत होती है, कई लोग शिकार करने का साहस भी कर बैठते हैं। इस प्रकार एक कुकथा के पढ़ने-सुनने से जीवन के हरे-भरे उद्यान में हिंसा की आग प्रज्वलित हो उठती है । जीवन के बे क्षण भयंकर होते हैं, जिनमें वह शिकारी बनकर दिन पर दिन घोर हिंसा-निर्दोष जानवरों की हत्या करने पर उतारू हो जाता है।
कई लोग यात्रा-कथाएँ कहने या पढ़ने-सुनने के शौकीन होते हैं। यात्राकथाओं से कुछ जानकारी तो हो जाती है देश-विदेश के रहन-सहन की, संस्कृति की, और चाल-चलन की। उसका प्रभाव कभी-कभी तो मनुष्य के अनुकरणशील मस्तिष्क पर इतना जबर्दस्त पड़ता है कि वह उस यात्रा-कथा में से अच्छाई को ग्रहण करने के बजाय बुराई को ग्रहण करने लग जाता है। वह उस-उस देश के लोगों में व्याप्त दुर्व्यसनों को अपना लेता है, विदेशी संस्कृति के सांचे में अपने जीवन को ढालने लगता है। भारतीय लोगों ने पश्चिम के लोगों में जो गुण-समय की पाबन्दी, स्वदेशप्रेम, काम के समय काम करना, व्यर्थ की गपशप या दुर्व्यसन-पोषण नहीं, काम करने से जी न चुराना, मानव-सेवा करना आदि सद्गुण थे, उन्हें नहीं अपनाया; किन्तु उनमें जो दुर्गुण थे-सिगरेट पीना, स्त्री-पुरुषों का स्वच्छन्द रूप से घूमना, खड़े-खड़े
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