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२२ : आनन्द प्रवचन : भाग १२
द्वारा प्रचलित स्वदेशी व्रत में बहुत अन्तर है। देशकथा में अपने देश के विकृत रीति-रिवाजों, संस्कारों या विकृतियों की ही प्राय: चर्चा रहती है । जबकि स्वदेशी व्रत में व्यक्ति अपने देश में बनी हुई वस्तुओं को इस्तेमाल करता है, देश के प्रति वफादारी रखता है, देश पर संकट आने पर वह तन-मन-धन से सहयोग देने में पीछे नहीं हटता । देश की सुरक्षा के लिए प्राण न्योछावर करने को तैयार रहता है । स्वदेशी व्रत के पीछे राष्ट्रधर्म है, जबकि देशकथा के पीछे या तो थोड़ा-सा स्वार्थ रहता है, अथवा वहाँ के स्थानीय या बाहर के लोग बैठकर देश की राजनीति, संस्कृति आदि पर विचार चर्चा करते हैं जिनमें तथ्य बहुत थोड़ा होता है, अधिकांश मनोरंजन के लिए देश-विदेश की यात्रा-कथाओं या शिकार की चर्चाएँ करते रहते हैं।
जहाँ देश की भलाई के लिए परस्पर विचार-विमर्श किया जाता हो, वहाँ वह देशकथा नहीं कहलाती परन्तु जहाँ देश-हित के विरुद्ध एक देश को दूसरे देश से लड़ाने-भिड़ाने, देश में फूट डालने, देश को लूटने, देश में अराजकता फैलाने, देशद्रोह करने, देश की संस्कृति को चौपट करने एवं देश का पतन करने वाली कथा की जाती हो, विचार विमर्श किया जाता हो, एक-दूसरे को प्रेरणा दी जाती हो, वहाँ अवश्य ही देशकथा है । देश विकथा पाप है, देशहित की कथा पुण्य है। यह अन्तर समझ लेना चाहिए।
इन चार विकथाओं को कहने-सुनने का परिणाम बहुत बुरा आता है। इनसे मनुष्य का जीवन पतन एवं पाप की ओर जाता है। विकथाओं से किसी का कल्याण न तो हुआ है, और न ही होगा अपितु उससे कल्याण का मार्ग अवरुद्ध हो जाता है। कई लोग अकर्मण्य, निठल्ले एवं आलसी बनकर जब-तब इन्हीं चारों विकथाओं में से किसी न किसी विकथा को करते रहते हैं। भारत में तो बहुत-से दुर्व्यसनी लोग गपशप में इन्हों विकथाओं का आश्रय लेते हैं। वे अपने समय, शक्ति और बुद्धि का अपव्यय और दुरुपयोग इन्हीं विकथाओं में करते रहते हैं।
आधुनिक विकथाएँ-कई लोग वर्तमान में प्रचलित विकथाओं में अपने समय और शक्ति का अपव्यय करते हैं । वे या तो अश्लील साहित्य पढ़ते हैं, जैसे-अश्लील उपन्यास, नाटक या कहानियाँ ऐसी कथाएँ हैं, जिनके पढ़ने से कामवासना पैदा होती है। उपन्यास को नवल-कथा भी कहते हैं। कई उपन्यास ऐसे होते हैं, जिनमें चोरी की या ऐसी तिलस्मी कथाएँ होती हैं, जिनसे तुच्छ मनोरंजन के सिवाय कोई हितशिक्षा नहीं मिलती बल्कि ऐसे उपन्यास पढ़कर अथवा ऐसे उपन्यासों की कथा कहसुनकर चोरी डकैती आदि के दुःसाहसिक कुकर्म करने लग जाते हैं।
कुछ वर्षों पहले की एक घटना है। एक नवयुवक ने जो अभी विद्यार्थी ही था, ऐसी एक दुःसाहसिक नवलकथा (उपन्यास) पढ़ी जिससे उसका विचार चोरी एवं डकैती करने का हो गया। एक दिन उसने दुस्साहस किया। वह रात को एक दूकान का दरवाजा तोड़ने लगा, जैसे उस नवल-कथा में लिखा था, ठीक उसी तरह का उसने
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