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२० : आनन्द प्रवचन : भाग १२
आजकल के सिनेमाओं में प्रायः अश्लील काम-कथाएँ ही होती हैं, केवल श्रव्य के रूप में ही नहीं दृश्य के रूप में भी, जिनका प्रभाव सीधा वर्तमान युवक-युवतियों पर पड़ता है।
अधिकतर चलचित्र ऐसे ही तैयार किये और दिखाये जाते हैं, जिनसे वर्तमान युग का जन-मानस बहुत अधिक विकृति की ओर मुड़ता है, वह अत्यधिक काम-वासना से प्रेरित हो जाता है । मानसिक विकार से प्रत्यक्ष तो नहीं परोक्ष रूप से ब्रह्मचर्य भंग होता है । आप माने या न मानें, सिनेमा के तारक-तारिकाओं की तरह का फैशन, पोशाक या पहनावे का अनुसरण बहुत-से युवक-युवतियां करने लगते हैं। बहुत-से युवकयुवतियाँ तो लज्जा एवं मर्यादा छोड़कर सिनेमा के तारक-तारिका बनने को ललचाते हैं। मगर उससे उनका जीवन उत्कृष्ट नहीं रहता। काम-कथा सुनकर बहुत-से युवकयुवतियां अपने अभिभावकों को सिनेमा के तारक-तारिकएं बनने की अनुमति देने को बाध्य कर देते हैं। वास्तव में काम-कथा श्रवण करके या काम-कथा के चलचित्र देखकर अथवा काम-कथामूलक अश्लील उपन्यास पढ़कर वर्तमान युवक प्रायः अपने जीवन में फैशन, विलास और कामवासना को चरितार्थ करने लगते हैं। आये दिन युवकयुवतियाँ परस्पर काममूलक प्रणय-दाम्पत्य प्रेम में पड़ जाते हैं। माता-पिता के सामने जब वे अपना विवाह प्रस्ताव रखते हैं तो उन्हें आश्चर्य और हदय को धक्का लगता है । वे इसके लिए तैयार नहीं होते कि मेरी लड़की या लड़का अपनी जाति के तथा सह्य आचार-विचार वालों के साथ पाणिग्रहण न करके अन्य के साथ करें पर वे कामान्ध होकर माता-पिता की बात को भी ठुकरा देते हैं। आखिर वह प्रेम-विवाह प्रायः असफल होता है। यह सब काम-कथा श्रवण या प्रेक्षण का ही फल है ।
भक्तकथा-भक्तकथा का अर्थ होता है--भोजन के सम्बन्ध में विकथा करना। तरह-तरह की खाद्य वस्तुओं के सम्बन्ध में जिक्र करना, रात-दिन खाने-पीने की बातों को चर्चा करना, कौन-सा खाद्य कहाँ मिलता है ? कैसे बनाया जाता है ? कौन-सा पदार्थ घटपटा या स्वादिष्ट होता है ? किस-किस खाद्य का कितना मूल्य बैठता है ? इत्यादि स्वादेन्द्रिय के विषय को पोषण करने की ही बातें करना भक्तकथा है। इस विकथा को उपलक्षण से 'भोगकथा' कह सकते हैं । केवल जिह्वन्द्रिय-विषय का ही नहीं, शेष चारों इन्द्रियों के विषयों का उपभोग भी भक्तकथा के अन्तर्गत सम्भव है।
वर्तमान युग का मानव इन्द्रिय-विषयों की ओर शीघ्र आकर्षित होता है । कई लोगों की इन्द्रिय-विषयों का उपभोग करने की लालसा इतनी प्रबल हो जाती है कि वे अपना आपा भूलकर उनकी प्राप्ति के लिए चिन्तन करते रहते हैं। उन्हीं विषयों की चर्चा बार-बार करते-सुनते रहते हैं। कई कर्णेन्द्रिय विषयरसिक लोग जब देखो तब कहते-सुनते हैं-"अहा ! कितना सुन्दर गीत है ! मैं तो इस गीत को सुनकर मुग्ध हो गया ।" नासिका को अत्यन्त प्रिय लगने वाली भीनी-भीनी सुगन्ध की चर्चा करने-सुनने से घ्राणेन्द्रिय विषय का उपभोग करने की लालसा जागृत होती है।
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