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८२. धर्मकथा : सब कथाओं में उत्कृष्ट
प्रिय धर्मप्रेमी बन्धुओ !
आज मैं आपको एक विशेष नीति की ओर निर्देश करना चाहता हूँ । मनुष्य अपने जीवन में श्रवण, मनन, निदिध्यासन करता है, किन्तु बहुत से लोगों को यह विवेक नहीं होता कि क्या सुनना, क्या चिन्तन-मनन करना और क्या निदिध्यासन करना चाहिए ? बहुत-से लोग प्राय: श्रृंगार - कथा, या स्त्रियों के हाव-भाव, सौन्दर्य आदि की कथा में अत्यधिक रुचि रखते हैं । कई लोग खाने-पीने आदि के सम्बन्ध में ही गपशप करते हैं । वर्तमान युग के प्रभाव से बहुत-से लोग राजनीति की बातों के सम्बन्ध में ही अधिकांश बात-चीत कहते-सुनते हैं । महर्षि गौतम ने उत्कृष्ट जीवन बनाने के लिये धर्मकथा के श्रवण-मनन आदि की ओर ही इंगित किया है । गौतम कुलक का यह ६८व जीवन-सूत्र है । इसमें महर्षि गौतम ने निर्देश किया है— 'सव्वा कहा धम्मका जिणाइ'
समस्त कथाओं को धर्म-कथा जीतती है । अर्थात् धर्म - कथा समस्त कथाओं में उत्कृष्ट है।
धर्मकथा क्यों सब कथाओं में श्रेष्ठ है ? दूसरी कथाओं का जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है ? और धर्मकथा जीवन को कैसे उच्च पद पर या सर्वोच्च सन्मार्ग पर ले जाती है ? इन सब पहलुओं पर मैं आपके समक्ष विश्लेषण प्रस्तुत करूंगा ।
अन्य कथाएँ और धर्म - कथा
संसार में अनेक प्रकार की कथाएँ चलती हैं । प्रत्येक कथा का व्यक्ति के मन पर अच्छा या बुरा कुछ न कुछ प्रभाव पड़ता ही है। जिसका प्रभाव मनुष्य के मन पर बहुत बुरा पड़ता है, जिससे राग-द्वेष पैदा हो अथवा जिससे काम-वासना पैदा हो, भोग-वृत्ति जागृत हो, जिसके कारण काम, क्रोध, लोभ, मोह, अभिमान, छल-कपट, मत्सर, ईर्ष्या आदि वैकारिक वृत्ति पैदा हो, उसे जैन शास्त्रों में कुकथा या विकथा कहा गया है । ऐसी विकथाएँ मुख्यतया चार बताई गई हैं - ( १ ) स्त्री - कथा, (२) भक्त-कथा, (३) राज - कथा और (४) देश - कथा ।
स्त्री कथा - जिस कथा में स्त्रियों के अंगोपांगों का, उनके हाव-भाव, विलास, एवं काम-क्रीड़ाओं का इस ढंग से वर्णन किया जाय, जिससे कामोत्त ेजना पैदा हो, मनुष्य का मन जिसे श्रवण-मनन करके काम-भोगों में आसक्त हो जाये, मनुष्य की वृत्ति सांसारिक विषय - विकारों की ओर, आमोद-प्रमोद, रंग-रेलियों आदि की ओर
मुड़ जाये, उसे स्त्री-कथा कहते हैं । स्त्री-कथा को हम काम-कथा भी कह सकते हैं ।
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