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१६ : आनन्द प्रवचन : भाग १२
धर्मकला को कौन उपलब्ध करता है ?
प्रश्न होता है-धर्मकला को कौन हस्तगत करता है ? हमारे समक्ष इसके पाँच विकल्प उपस्थित होते हैं
(१) क्या वे धर्मकला को उपलब्ध कर लेते हैं जो धर्म के प्रति अन्धविश्वासी हैं ? धर्म की हर बात को, हर नियमोपनियम को चाहे आज वह विकासघातक एवं युगबाह्य ही क्यों न हो गया हो, आँखें मूंदकर स्वीकार कर लेते हैं, धर्म के नाम से चल रहे अन्धविश्वास, कुरूढ़ि और कुरीति या परम्परा पर वे विश्वास कर लेते हैं।
(२) क्या वे धर्मकला को उपलब्ध कर सकते हैं, जो बिलकुल अविश्वासी हैं। धर्म की अच्छी बात हो, चाहे बुरी. हितकर नियमोपनियम हों चाहे सार्वजनिक कल्याण की बात हो, वे विश्वास नहीं करते । वे धर्म के नाम से ही चिढ़ते हैं। धर्म का नाम भी सुनना नहीं चाहते। ऐसे अविश्वासी लोग धर्म की युगानुकूल मर्यादाओं को बिलकुल ठुकरा देते हैं । अविश्वास ही उनका धर्म है।
(३) अथवा तथाकथित वैज्ञानिक धर्मकला को उपलब्ध करेंगे, जो यह कहते हैं कि हमारी प्रयोगशाला में जो सिद्ध होगा उसे ही हम धर्म या सत्य मानेंगे, उस पर ही विश्वास करेंगे, उसके सिवाय बाकी सबको असत्य मानेंगे, उस पर विश्वास नहीं करेंगे।
(४) चौथे वे हैं जो तार्किक हैं या दार्शनिक हैं, वे कहते हैं, हम धर्मशास्त्र या ग्रन्थ पढ़ेंगे, धर्म की व्याख्या करेंगे और उसी में से जीवन के सत्य को छान लेंगे । क्या ऐसे तार्किक लोग धर्मकला को उपलब्ध कर सकते हैं ?
मेरे नम्र मत से पहले लोग, जो कि अन्धविश्वासी हैं, वे धर्म की, धर्मग्रन्थों की, धर्मगुरुओं की पूजा कर लेंगे, अहिंसा और सत्य के मन्दिर बनाकर उनकी पूजा कर लेंगे । परन्तु धर्म को आम-जनता के आचरण की चीज नहीं होने देंगे । आम-जनता में अहिंसा आदि धर्म आ गया, आम-जनता धर्मग्रन्थों को या धर्म की बातों को युक्ति और तर्क से समझने लगी या धर्मगुरु के उपदेश सुनकर उनके कहे अनुसार चलने लगी तो धर्म, धर्मग्रन्थ और धर्मगुरु भ्रष्ट हो जायेंगे अतः जो अशिक्षित, अपढ़, ग्रामीण या कम समझ के लोग हैं, उनसे धर्म, धर्मग्रन्थ और धर्मगुरु को बचाओ । ऐसे लोग धर्मकला को न तो स्वयं उपलब्ध करते हैं, न दूसरों को करने देते हैं । वे धर्म के लिए लड़ेंगे-मरेंगे, पर शुद्ध धर्म का जीवन में आचरण नहीं करेंगे ।
इसी प्रकार के दूसरे लोग जो बिलकुल अविश्वासी हैं जो धर्म से सर्प या बिच्छू की तरह दूर भागते हैं, धर्म का जीवन से स्पर्श नहीं होने देते, वे भी धर्मकला से कोसों दूर हैं।
___तीसरे नम्बर में वे वैज्ञानिक हैं जो श्रद्धा और हृदय को तिलजांलि देकर केवल प्रयोगशाला में सिद्ध को ही मानते-जानते हैं, वे भी व्यापक धर्मकला का स्पर्श नहीं कर सकते ।
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