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सभी कलाओं में धर्मकला सर्वोपरि : १३
लगाने की बीड़ा उठाया, मगर धूर्त चोर सबकी आँखों में क्रमशः धूल झौंककर सबके यहाँ चोरी करके चला गया। राजा और मंत्री सभी निराश हो गये।
इसी बीच सुविशुद्ध नामक केवली भगवान् पधार गये । राजा और नागरिकों के साथ चोर भी गुटिका-प्रयोग द्वारा वेष बदलकर मुनिवन्दन करने पहुंचा । सहस्रमल्ल ने उनका वैराग्यमय उपदेश सुना । पश्चात्तापपूर्वक अपनी कुकृत्यकथा कही, साथ ही दीक्षा देने की प्रार्थना की। केवली भगवान् बोले- "देवानुप्रिय ! पहले आत्मा को निर्मल करो। मन-वचन-काया के योगों की शुद्धि करो। फिर निःशल्य होकर दीक्षा लो।"
सहस्रमल्ल-"भगवन् ! मैंने महादुष्ट कर्म किये हैं। यहाँ का राजा मुझ पर अत्यन्त द्वेष रखता है । अतः अन्यत्र जाकर दीक्षा लूगा ।"
केवली मुनि-"भद्र ! डरो मत । प्रातःकाल राजा दर्शन करने आयेगा, तब तू यहीं रहना । सभी कुछ ठीक होगा।"
मुनिवन्दन करने जब राजा आया और उसने चोर का पता पूछा तो मुनि ने कहा-“वह चोर तो अब चोरी छोड़कर समस्त आरम्भ-परिग्रह का त्याग करके मुनिदीक्षा लेने को तैयार हो रहा है । वह मोक्ष की साधना के लिए तैयार हो रहा है तो आपको अब उस पर द्वेष न रखकर उसे सहायता करनी चाहिए।"
राजा ने कहा- "भगवन् ! आपकी आज्ञा शिरोधार्य है।"
फिर राजा को अपने साथ लेकर सहस्रमल्ल अपने घर आया । जिस-जिसका धन चुराया था उन सबकी पहचान कराकर वापस लौटा दिया। राजा ने उसका दीक्षामहोत्सव किया। उसने दीक्षा लेते ही यावज्जीवन मासखमण तप करने का अभिग्रह किया । सहस्रमल्ल मुनि ने उग्र तप करते हुए अपने कर्मक्षय किये और क्रमशः केवलज्ञान और मोक्ष प्राप्त किया।
बन्धुओ ! कथा बहुत लम्बी है, मैंने आपके समक्ष बहुत ही संक्षेप में यह रखी है। सारांश यह है कि सहस्रमल्ल में चोर होने के साथ-साथ अनेक कुकृत्य कलाएँ थीं, अगर उसमें धर्मकला न आयी होती तो वह सीधा दुर्गति में जाता, परन्तु धर्मकला के प्रभाव से उसने मोक्ष प्राप्त कर लिया।
दूसरी दृष्टि : प्रसिद्धि आदि की लिप्सा कई लोग कई कलाओं में माहिर होते हैं, तथा जीवन-कला में भी माहिर होते हैं, विविध पहलुओं को लेकर वे जीवन की कलाओं के अभ्यासी भी होते हैं, परन्तु इसके साथ उनकी दृष्टि यश, प्रसिद्धि आदि की लिप्सा से प्रेरित होती है। अथवा किसी न किसी प्रकार की इहलौकिक या पारलौकिक वांछा से प्रेरित होती है तो सुकार्य को लेकर होने पर अपनाई जाने वाली वह कला अधिक से अधिक पुण्यलाभ प्राप्त कर सकती है, अथवा कलाकार की अमुक कामना या स्वार्थ की पूर्ति करा सकती है । इससे अधिक नहीं।
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