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________________ १२ : आनन्द प्रवचन : भाग १२ दो तो मैं राजा से मिल आऊँ ।” वेश्या ने सौदागर जानकर आभूषण दे दिये । फिर वह सौदागर के पास आया और बोला- "अभी बहुत अच्छा मुहूर्त है । आप एक उत्तम घोड़ा दे दें, मैं राजा को उसे नमूने के रूप में दिखाकर सारे घोड़े बिकवा दूंगा।" सौदागर ने उसे घर का मालिक व व्यापारी जानकर घोड़ा दे दिया । सहस्रमल्ल घोड़ा और आभूषण लेकर अपने घर पहुँचा । माता से सारी बात कही। इधर काफी देर हो जाने पर वेश्या ने शंकावश सौदागर के आदमी से पूछा-'सौदागर अभी तक क्यों नहीं आये ?" उसने कहा- "बाहर बैठे हैं।" वेश्या ने उसके पास जाकर पूछा कि “सौदागर आप हैं !" उसने कहा-"हाँ मैं ही हूँ।"वेश्या बोली मेरे आभूषण ले गया, वह कौन था? सौदागर-"क्या वह घर का मालिक नहीं था ?" वेश्या बोली-"वह मेरे आभूषण ठग ले गया।" सौदागर ने भी कहा--"वह मुझे ठगकर घोड़ा ले गया है।" फिर दोनों राजा के पास पहुँचे, फरियाद की। राजा ने कुपित होकर कोतवाल को धमकाया और पाँच दिन में उसे खोज निकालने को कहा। __ चोर की माँ ने ये सारी बातें सुनकर अपने बेटे से कहीं। अतः सहस्रमल्ल ब्राह्मण का वेष बनाकर नगर में घूमता-घूमता एक देवालय में पहुंचा, जहाँ कोतवाल जुआ खेल रहा था। विप्रवेशी चोर भी जुआ खेलने बैठ गया। कोतवाल ने जुए में हारकर अपनी नामांकित रत्नजटित अंगूठी दे दी। सहस्रमल्ल ने भी इसके बदले में कुछ दिया। इतने में कोतवाल को बुलाने द्वारपाल आया, बोला--"राजाजी आपको बुलाते हैं।" कोतवाल उठकर द्वारपाल के साथ गया । सहस्रमल्ल सीधा कोतवाल के घर पहुँचा और उसकी पत्नी से कहा-“घर में जो भी अच्छा-अच्छा माल हो, वह दे दो।" उसने पूछा- "आपको किसने भेजा है ?" सहस्रमल्ल बोला—'कोतवालजी को राजपुरुष गिरफ्तार कर ले गये हैं । मुझे उन्होंने कान में कहा-मेरी नामांकित मुद्रा ले जाओ और मेरे घर से अच्छा-अच्छा माल ले आओ। देखो, यह निशानी दी है ।" नामांकित मुद्रा से कोतवाल की पत्नी को पक्का विश्वास हो गया। उसने सहस्रमल्ल को अच्छा-अच्छा माल निकालकर दे दिया। सहस्रमल्ल तो वह माल लेकर सीधा अपने घर पहुँचा। कोतवाल जब घर आया तो उसकी पत्नी ने सारी बातें कहीं। सुनकर कोतवाल के तो होश गुम हो गये । कोतवाल उदास होकर राजा के पास पहुँचा। अपनी कष्टकथा कही कि "हजूर ! मुझे भी वह चोर ठग ले गया।" इसके पश्चात राजा ने स्वयं चोर को पकड़ने का संकल्प किया । पर सहस्रमल्ल राजा के पास भी मालिश करने वाला बनकर पहुँच गया। राजा को जब नींद आ गई तो धीरे से सभी आभूषण लेकर चंपत हो गया। सुबह पता लगा तो राजा भी आश्चर्यचकित हो गया। उदास राजा ने मंत्री से सारी बात कही और मंत्रवादी, तंत्रवादी, ज्योतिषी से पूछकर चोर का पता लगाने का विचार किया। श्रावक जिनरक्षित, विद्वान् विमलकीर्ति, चौदह विद्या में पारंगत नारायण भट्ट, शैवधर्मी आचार्य, बौद्धमती मनुसिरी भिक्षु, परमहंस कपिल, नास्तिकवादी सुरप्रिय आदि सभी ने चोर का पता Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004015
Book TitleAnand Pravachan Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1981
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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