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सभी कलाओं में धर्मकला सर्वोपरि : ११
कहा - "तू चिन्ता क्यों करती है ? लोगों में कोई अफवाह सुनो तो मुझे कहना ।" सबेरे उठकर चोर की माँ नगर के बाहर पनघट पर गई । वहाँ पुरोहित की लड़की पानी भरने आई । उसे किसी स्त्री ने पूछा - "सुना है, पुरोहितजी के यहाँ चोरी हुई है, बात सच्ची है क्या ?" वह बोली - "हाँ सच्ची है।" फिर उसने पूछा- कुछ पता लगा चोर का ?" वह बोली - " अभी तक नहीं मिला । मेरे पिता ने राजा के स फरियाद की । राजा ने कोतवाल को बुलाया था । उसी समय धनसार सेठ और एक नाई किसी कार्यवश वहाँ आये थे । सेठ ने राजा से कहा -- चोर ने बहुत धन चुराया है, अतः वह बढ़िया वस्त्र लेने मेरे यहाँ आयेगा । नाई ने कहा- मेरे पास भी वह हजामत बनवाने आयेगा, तब पकड़ कर आप को सौंप दूँगा ।"
चोर की माँ सारी बात सुनकर घर गई । पुत्र को सारी बात कह सुनायी । चोर बनिये का वेष बनाकर नाई के यहाँ गया । नाई भी देखकर खुश हुआ । उसकी हजामत बनायी । उसे चोर की शंका हुई । चोर ने चलते समय कहा - " मेरे साथ इस लड़के को भेजो, मैं इसे पैसे दिला देता हूँ ।" नाई ने अपने लड़के को भेजा । इधर चोर धनसार सेठ की दूकान पर गया और बढ़िया वस्त्र बताने को कहा । सेठ ने वस्त्र दिखाये। उनमें से बढ़िया वस्त्र लेकर जब सहस्रमल्ल चलने लगा तो सेठ ने कहा - "इनकी कीमत कौन चुकायेगा ?" वह बोला - " मैं अभी इसके रुपये लेकर आता हूँ तब तक इस लड़के को रख जाता हूँ ।" वहाँ से चंपत होकर चोर घर आया । माता को वस्त्र सौंपकर कहा - " इसकी प्रतिक्रिया क्या होती है ? सुन आओ ।"
माता ने बातें सुनकर कहा - "बेटा ! सेठ और नापित दोनों ने राजा से फरियाद की है । उस समय वहाँ उपस्थित सौदागर और गणिका दोनों ने तुझे पकड़कर सौंपने का बीड़ा उठाया है ।" सहस्रमल्ल सार्थवाह का वेष बनाकर सौदागर के पास पहुँचा । सौदागर ने उसका सत्कार किया । सहस्रमल्ल ने पूछा - "आप यहाँ नगर के बाहर क्यों ठहरे हैं ? चलिये मेरे घर पर । वहाँ आपके घोड़े भी बिक जायेंगे ।" सौदागर बोलापराये घर जाने को मेरा मन नहीं मानता ।" सहस्रमल्ल ने कहा - "वाह ! मैं तो आपका भाई हूँ । सज्जन के यहाँ सज्जन को किस बात का संकोच है ? आप अपना ही घर समझिए ।" सौदागर उसकी उदारता तथा मधुर विनयभरी बातें सुनकर प्रभावित हो गया । बोला - " अच्छा चलूंगा आपके यहाँ ।" सहस्रमल्ल झटपट वहाँ से उठकर कामपताका वेश्या के यहाँ पहुँचा । उसकी दासी से कहा कि अपनी मालकिन से पूछो कि तुम्हारा विशाल घर जानकर सौदागर तुम्हारे यहाँ ठहरना चाहता है । वेश्या भी लोभ-प्रेरित होकर बोली - "हाँ, खुशी से आएँ उनका घर है ।" सहस्रमल्ल तैयारी कर रहे सौदागर के यहाँ पहुँचा और वेश्या के यहाँ उसे ले आया । वेश्या ने पहले से सारा मकान लीप-पोतकर स्वच्छ कर रखा था । सौदागर के घोड़े वेश्या के आंगन में बँधवाये |
फिर वह कामपताका वेश्या के पास संकेत किया । सहस्रमल्ल ने कहा - "अभी मुझे मिला नहीं हूँ । मेरे पास आभूषण नहीं है । अतः थोड़ी देर के लिए तुम्हारे आभूषण
गया । उसने आसन दिया। बैठने का बैठना नहीं है । मैं अभी तक राजा से
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