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________________ ८ : आनन्द प्रवचन : भाग १२ __ एक वैज्ञानिक का इंटरव्यू लेने के लिए एक प्रसिद्ध पत्रिका के प्रेस प्रतिनिधियों का एक शिष्टमंडल आया। इस वैज्ञानिक के एक के बाद एक नये-नये आविष्कारों से आकर्षित होकर उसकी कार्य-सफलता का रहस्य जानने के लिए ही यह प्रेस प्रतिनिधि दल आया था। सर्वप्रथम उस वैज्ञानिक की प्रयोगशाला में वह घुसा और विविध अद्यतन साधनों को देखकर चकित हो गया किन्तु तब तक वैज्ञानिक तो अपनी प्रयोगशाला में प्रयोग में लीन था। इतने मनुष्यों की पदचाप उसकी एकाग्रता भंग न कर सकी । अन्त में प्रेस प्रतिनिधि दल के अग्रगण्य पत्रकार ने उसका ध्यान भंग करने का साहस किया। ध्यान भंग होते ही उसकी दृष्टि प्रयोग सामग्री पर से हटकर पत्रकारों की ओर मुड़ी। आगे आकर बहुत ही प्रेमपूर्वक उसने सभी का स्वागत किया। प्रेस प्रतिनिधि उसके चारों ओर बैठ गये । सब की लेखनी हाथ में उद्यत थी- उस वैज्ञानिक की वाणी को कागज पर अंकित करने हेतु । विज्ञान के क्षेत्र में उसने जो नयी-नयी शोध-खोज की थी, उसके बारे में तलस्पर्शी माहिती प्राप्त करने के बाद एक प्रतिनिधि ने प्रश्न किया-आप तो अपने कार्यों में सतत लीन रहते हैं। इस बीच में कभी आप किसी कार्य को भूल भी जाते होंगे? वैज्ञानिक की विचक्षण दृष्टि प्रश्नकर्ता की ओर मुड़ी । मुस्कराते हुए उसने जवाब दिया-~-मुझे कार्य में अब तक जो कुछ भी सफलता मिली है, उसकी गुरु-चाबी इसी प्रश्न के प्रत्युत्तर में निहित है। दिन का कार्य पूरा निबटाने के बाद मैं जब आराम के लिए अपने शयनखण्ड में प्रविष्ट होता हूँ, तभी सोने से पहले आगामी दिन (कल) के कार्यों की पूरी सूची एक कागज पर अंकित कर लेता हूँ। दूसरे दिन उसी सूची के अनुसार कार्यों को समेट लेने का मैं लगातार प्रयत्न करता हूँ। हाथ में लिये हुए कार्य के प्रति गोंद की तरह चिपके रहना ही मेरी कार्यसफलता की इमारत की सुदृढ़ नींव है। पत्रकारों के संतोषपूर्वक विदा होते ही पुनः वह वैज्ञानिक अपनी प्रयोगसमाधि में लीन हो गया। वह महान् वैज्ञानिक था-'टॉमस आल्वा एडिसन ।' कार्य में सतत रत रहना ही कार्य सफल करने की कला है। ये दुर्गुण कला में आग लगाने वाले हैं अविश्वास, कलह, वैरभाव, स्वार्थ, शत्रता, प्रतिस्पर्धा आदि कला में आग लगाने वाले हैं । बाह्य कलाओं में से मनुष्य चाहे कितनी ही कलाओं में प्रवीण हो, किन्तु अगर वह इन दुर्गुणों से युक्त है तो उसकी कला बदनाम होगी, वह जीवन-कला नहीं होगी। उसका जीवन कलाहीन हो जाता है, अधर्म और पाप से भर जाता है । एक कार्य : तीन दृष्टियाँ ___ मनुष्य किसी काम को लगन, सुरुचि और पूरी दिलचस्पी के साथ करता है, तो निःसन्देह वह उस कार्य में सफलता प्राप्त करता चला जाता है, उसकी सोई हुई शक्तियाँ जागृत हो जाती हैं ; बशर्ते कि प्रत्येक कार्य एक खेल, एक कला मालूम हो, बोझ न लगे । परन्तु इतना होने पर भी उसके पीछे कार्य करने वाले की दृष्टि क्या Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004015
Book TitleAnand Pravachan Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1981
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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