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धम ही शरण और गति है : ३१७
धर्मः एक महासागर धर्म महासागर के समान विशाल, स्पष्ट, गहन और गम्भीर जीवन प्रणाली है। यही कारण है कि जैसे महासागर की पहचान अमुक नदियों के जल से नहीं होती, किन्तु वह होती है-उसकी विशालता, व्यापकता और गहनता को देखकर; इसी प्रकार धर्म की पहचान अमुक सम्प्रदाय, पंथ आदि से नहीं होती, और न वह होती है, केश, वेश या क्रियाकाण्डों से; वह होती है- उसकी व्यापकता, गहराई और सबको अपने में समा लेने की शक्ति के कारण । समुद्र में बिना किसी भेदभाव के अनेक नदी, नद आदि आकर मिलते हैं, समुद्र किसी को मना नहीं करता, इसी प्रकार धर्म भी वर्ण-जाति या देश-काल आदि का भेद किये बिना प्रत्येक आत्मपरायण को अपने में मिला लेता है । समुद्र में जैसे मृतक-शरीर नहीं रहने पाता, उसी प्रकार जीवन के सत्य (आत्मा-परमात्मा) के प्रति जिसकी आस्था नहीं रही, जो जड़बुद्धि या नास्तिक हो गए हैं, उन्हें धर्म अपने में नहीं मिलाता । समुद्र अपना रस नहीं बदलता, अपनी मर्यादा का उल्लंघन नहीं करता, उसी प्रकार धर्म भी अपना रस (अहिंसा, सत्यादि) नहीं बदलता, वह अपरिवर्तनीय रहता है, और अपने सिद्धान्तों पर दृढ़तापूर्वक टिके रहने की शिक्षा देता है। समुद्र क्रमशः नीचा और गहरा होता जाता है, वैसे ही धर्म का अनुगामी भी धर्म को पाकर विनयशील (नम्र) और गम्भीर (सत्यता की गहराई में) होता चला जाता है ।
समुद्र में अनेक प्रकार के रत्न, मूगे, मोती आदि भरे होते हैं, साथ ही सेवाल, खर-पतवार भी, वैसे ही धर्म भी अनेक गुणों (क्षमा, सेवा, दया, मार्दव, सरलता आदि) का आगार होते हुए भी उसमें तुच्छ एवं अवरोधक भी समाविष्ट होते हैं । महासमुद्र की तरह धर्मरूपी महासागर से भी वैसे ही विस्तृत, महान् एवं उदार बनने की प्रेरणा मिलती है।
धर्म में राजनीति, अर्थनीति, संस्कृति, परिवार, समाजनीति, सम्प्रदायनीति, जाति आदि सबका समावेश हो जाता है। धर्म उदारतापूर्वक सबको अपनाकर सबमें अपना रंग डाल देता है ; बल्कि राजनीति, अर्थनीति आदि में से जो धर्म में समाविष्ट नहीं होते, अर्थात्-धर्म में नहीं मिलते, वे धर्मरहित होने से लोक-श्रद्धय, लोकग्राह्य एवं लोक-उपयोगी नहीं होते । महात्मा गांधी ने स्वयं एक बार कहा था--"धर्मरहित सम्पत्ति त्याज्य है, धर्मरहित राज्यसत्ता राक्षसी है। जो धर्म शुद्ध अर्थ (धन) का विरोधी हो, वह धर्म नहीं है, जो धर्म शुद्ध राजनीति का विरोधी हो, वह धर्म नहीं है। अर्थ (धन) आदि से पृथक् शुद्ध धर्म नाम की कोई वस्तु हो नहीं सकती।"
___ धर्म का उद्देश्य-सभी रुचियों, क्षमताओं आदि का समावेश __धर्म की धारणा के अन्तर्गत उन सभी अनुष्ठानों, नीति-नियमों, विधि-विधानों और गतिविधियों का समावेश हो जाता है, जो मानवीय जीवन को गढ़ती और धर्म
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