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________________ ३०६ : आनन्द प्रवचन : भाग १२ निश्चित है कि वह उसी व्यक्ति की रक्षा करता है, जो धर्माचरण करता हो। जो व्यक्ति यह सोचकर चुपचाप बैठ जाता है कि धर्म को मेरी रक्षा की चिन्ता है, मैं अपनी चिन्ता क्यों करू ? वह भ्रम में है। स्वरक्षा की प्यास बुझाने के लिए स्वयं धर्माचरण का श्रम तो करना पड़ेगा। मेरे बदले दूसरा धर्म कर लेगा, उसके (नौकर के) द्वारा धर्मपालन से मेरी रक्षा हो जाएगी, यह बात धर्म में नहीं चलेगी। राजा हरिश्चन्द्र ने अपने बदले किसी और को विश्वामित्र का कर्ज चुका देने का आदेश नहीं दिया, न ही श्रीराम ने दूसरे को वन में भेजा। राजा दिलीप ने अपने बदले किसी और को नन्दिनी गाय को चरा लाने व उसकी सेवा करने का आदेश नहीं दिया । इन सबने स्वयं खुशी-खुशी कष्ट सहकर धर्मपालन किया तभी धर्म ने उनके जीवन की सर्वतोमुखी रक्षा की। इन्हें धर्मपालन करने में इतना श्रम और कष्टसहन करने में भी कोई असंतोष नहीं हुआ। इससे प्रकट है कि धर्म तभी रक्षा करता है जब मनुष्य स्वयं अपनी ओर से धर्माचरण के लिए कठोर पुरुषार्थ करता हो। रक्षा की प्यास स्वयं श्रम किये बिना नहीं बुझती । एक रोचक दृष्टान्त मुझे याद आ रहा है एक बार एक नवाब साहब के गाँव पर किसी ने चढ़ाई की। नवाब साहब ग्राम की सुरक्षा की जिम्मेवारी छोड़कर गाँव से भागे । चलते-चलते वे बहुत दूर निकल गए । अब उन्हें प्यास लगी । पास ही उन्होंने एक कुआ देखा । वहाँ बाल्टी और रस्सी दोनों पड़े थे। नवाब को विचार आया कि चलो सब चीजें मिल गई हैं, पानी निकाल लें । किन्तु ज्यों ही उन्होंने बाल्टी और रस्सी के हाथ लगाया, त्यों ही उन्हें याद आया कि-"अरे! मैं पानी कैसे निकालू, नवाब जो हूँ! कोई देख लेगा तो ?" यह सोचकर नवाब साहब वहीं प्यासे ही बैठे रहे । एक दूसरा आदमी वहाँ आया, उसे भी पानी पीना था। उसे देखकर नवाब ने कहा- "भाई ! मुझे पानी पीना है।" उसने कहा “तो आप भी खूब हैं । बाल्टी और रस्सी पड़ी है, पानी निकाल लीजिए न ?" नवाब बोला- "पर मैं नवाब हूँ, पानी कैसे निकाल सकता हूँ ?' उसने कहा – “यही दुःख मेरा है । मैं भी तो शाहजादा हूँ न!' नवाब- "अच्छा, किसी की इंतजार करें।" यों कहकर दोनों बैठ गए । कुछ देर बाद जब एक आदमी आया तब दोनों ने कहा-"भले आदमी! हम दो घंटे से तुम्हारा इन्तजार कर रहे थे। क्योंकि दोनों को पानी पीना था।" उसने कहा- "तो बाल्टी और रस्सी दोनों पड़े हैं, पानी खींचकर निकाल लो न, मैं भी पी लूगा।" दोनों ने कहा-“यों पानी निकाल लेते तो बात ही क्या थी ? मैं नवाब हूँ और यह शाहजादा है। हम पानी कैसे निकाल सकते हैं ?" वह बोला- “माफ करें, मैं भी अमीरजादा हूँ।" यों तीनों व्यक्ति प्यासे बैठे प्रतीक्षा करने लगे कि कोई आदमी आए, पानी निकाले और हमें पिलाए। दैवयोग से चौथा आदमी भी वहाँ आ गया। पर वह भी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004015
Book TitleAnand Pravachan Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1981
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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