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३०४ : आनन्द प्रवचन : भाग १२
पालन किया है । जिस धर्म के अनुसार तुम वन जाने को तत्पर हुए हो, वही धर्म तुम्हारी रक्षा करेगा । "
धर्म : माता-पिता की तरह रक्षक
जिस प्रकार माता-पिता अपने पुत्र की प्राणप्रण से रक्षा करते हैं, पुत्र पर वात्सल्य बरसाकर उसके हित की कामना करते हैं, कल्याण-मार्ग में प्रेरित करते हैं, पाप और अधर्म के पथ में जाने से रोकते हैं, उसी प्रकार धर्म भी माता-पिता की तरह अपनी पालनकर्ता संतति को सब तरह से विकास, हित और कल्याण के मार्ग में प्रेरित करता है, पाप और अधर्म - मार्ग में जाने से रोकता है । इसीलिए इतिहास समुच्चय में कहा गया है
'धर्मो माता पिता चैव"
"धर्म प्राणियों के लिए माता और पिता है ।"
धर्मः बन्धु, सखा और नाथ
कई बार मनुष्य चारों ओर से विपदाओं से घिर जाता है, समाज में उसका कोई सहायक नहीं रहता, सबल लोग उसे दुर्बल जानकर उस पर अन्यायअत्याचार करते हैं, वह रोग, शोक, पीड़ा आदि के दुःखों से पीड़ित होकर हैरान हो जाता है, कोई भी सहारा नहीं रहता, उस समय कौन रक्षा करता है, अथवा कौन आश्वासन देकर सन्मार्गपर स्थिर रखता है ? उस समय बन्धु बान्धव भी निरुपाय हो जाते हैं । मित्र और हितैषी भी पल्ला झाड़ देते हैं, मालिक और पारिवारिक जन भी जवाब दे देते हैं | कलिकाल सर्वज्ञ आचार्य हेमचन्द्र ने उस समय धर्म को ही असहाय का सहायक, निराश्रय का आश्रय बताया है
सखा
अबन्धूनामसौ बन्धुरसखीनामसौ अनाथामसौ नाथो, धमो विश्वैकवत्सलः ॥
"यह धर्म अबन्धुओं का बन्धु है, जिनके कोई मित्र नहीं हैं, उनका यह मित्र है, अनाथों का नाथ है । अतः विश्व का यही एक मात्र परमवत्सल है ।'
धर्म ही उस समय दुःखित और पीड़ित के आँसू पोंछने वाला परमबन्धु, परमहितैषी मित्र एवं अनाथों का नाथ बनकर कहता है- "घबराओ मत ! विपत्ति केवल तुम पर ही नहीं आई है । किसी पूर्वकृत अशुभकर्म के उदयवश तुम दुःख से घिर गये हो, रोगग्रस्त हो गये हो । परन्तु देखो, उन महापुरुषों को ! श्रीराम पर वन में क्या कम विपदाएँ आई थीं ? हरिश्चन्द्र राजा पर क्या मुसीबत कम पड़ी थीं ? पाँचों पाण्डवों
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१. इतिहास समुच्चय २. योगशास्त्र ४ / १००
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