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६ : आनन्द प्रवचन : भाग १२
प्यार और खुशी का वातावरण नहीं हो सकता । बच्चों की बिलकुल देख-रेख न करना, बहुत अधिक देखरेख करना अथवा अपने रौब के नीचे बिलकुल दबा देना, ये तीनों अवस्थाएँ कलात्मक जीवन की, स्वस्थ जीवन को नहीं हैं। उदासी : कलात्मक जीवन की पतझड़
जीवन के खुले पृष्ठ पर जब पतझड़ अपना पंख पसारती है तो वह वीरान हो जाता है। उदासी, मायूसी, निराशा या शंका (बहम) कलात्मक जीवव की पतझड़ है । कलात्मक जीवन में उमंग और उल्लास तो होता है, पर उदासी नहीं। जिस चेहरे पर प्रफुल्लता के स्थान पर उदासी होगी, आँखों में आशा के बदले निराशा होगी, विश्वास के बदले संशय होगा, वह ऐसी चित्रशाला के समान है, जिसके सभी चित्र उतार लिये गये हों। जीवन की कला ठूठ की तरह खड़े रहकर सड़ने में नहीं है । जीवन में लहलहाने का तरीका है, जीवन को सरस बनाना । आशा भरा जीवन ही जीवन का सौन्दर्य है। जिसमें आशा नहीं, जिसके मुह से यही निकलता रहे-"भाई ! अब तो हम जीवन की बाजी हार गये । बेकाम हो गये, बूढ़े हो चले । अच्छा हो, जल्दी से इस संसार से कूच कर जाएँ।” इस प्रकार जीवन से ऊब जाने वाला व्यक्ति अपने जीवन को सुन्दर, सरस, मधुर और आशाप्रद नहीं बना पाता । वह अपने जीवन में 'सत्यं शिवं मन्दरम्' की त्रिवेणी को नहीं पा सकता। नीम का फूल कड़वा है, परन्तु कलात्मक जीवन वाला उसकी सुन्दरता को देखता है, उसमें छिपा हुआ मधुरूप सत्य प्राप्त करता है, उसमें रोगहरण की जो शिवत्व-कल्याण-कारित्व है, उसे अपना लेता है।
__ 'सत्यं शिवं सुन्दरम्' की कलारूप त्रिपुटी को जो अपने जीवन में ओत-प्रोत कर लेता है, वह गृहस्थाश्रम में होगा तो गृहस्थी के बोझ से दबकर अपनी कमर नहीं झुकायेगा । वह भरसक प्रयत्न करेगा, गृहस्थाश्रम को प्रसन्नता से, स्वस्थता से और आनन्द से ओतप्रोत करने का। कलामय जीवन : जीवन को नैतिक गुणों से सजाना
____जीवन में शिष्टाचार भी एक कला है। स्वर में माधुर्य, वाणी में नम्रता, कार्यों में स्वच्छता, व्यवहार में शालीनता एवं कर्तव्यपरायणता, आचरण में उच्चता आदि मनुष्य के जीवन की एक-एक कला है। इन गुणों से जीवन विविध कलाओं से ओतप्रोत होता है। व्यक्ति का सभ्यता से उठना-बैठना, अदब से बातचीत करना, बड़ों का सम्मान करना, छोटों के प्रति वात्सल्य रखना, मधुर बोलना, गुरुजनों का आदर करना, अपराध होने पर उसे स्वीकार करना, किसी की क्षति या हानि अपने से होने पर उससे क्षमायाचना करके जहाँ तक हो सके क्षतिपूर्ति करना, सच्ची सलाह देना, धीमे बोलना आदि शिष्टाचार के ही अंग हैं । शिष्टाचार जीवन की वह कला है जो असुन्दर को सुन्दर बना देती है । कोयल काली-कलूटी है, पर जब वह पंचम स्वर में कुहुकती है, तब दूसरों के मन हर लेती है। वह सुन्दर बन जाती है।
एक काली कुरूप महिला बाजार के एक किनारे बैठ कर शहद बेचती थी।
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