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सभी कलाओं में धर्मकला सर्वोपरि : ५
कहना होगा कि मनुष्य की दिकृत विचारशीलता ने फैशन के प्रवाह में बहकर कला को बदनाम करने की कोशिश की है।
इसके विपरीत बाह्य कलाविहीन जीवन का दृश्य भी भौंडा-भद्दा-सा है। .
एक धनिक के पास सुन्दर बंगला है, पर आधा खाली है, चारों तरफ खुली जमीन है, पर वहाँ दो-दो फुट घास चढ़ी हुई है। बरामदे में दो-चार गमले रखे हैं, पर उन्हें कभी पानी नहीं दिया गया। ड्राइंगरूम में कीमती सोफासेट पड़ा है, पर परदे मैले टॅगे हैं, विदेशी शेविंग बॉक्स है, पर ब्रश पर बाल नहीं। कपड़ों का ढेर लगा है, पर समय पर एक भी धुला हुआ नहीं मिलता। रसोइघर में बर्तनों का ढेर लगा है, पर ऐसा लगता है, मानों ये सब नीलामी पर जाने वाले हैं। यही कारण है कि घर उखड़ा-उखड़ा है । रहने एवं जीने की कला के अभाव में अच्छा-भला घर खानाबदोशों का-सा लगता है।
जीवन जंगल नहीं है, वह छोटा-सा उद्यान है, उसके एक-एक अंग को कलात्मक ढंग से रखा जाता है । कलात्मक जीवन सरस, सरल, मधुर और सहज होता है। उसमें तन-मन-वचन की सभी प्रवृत्तियाँ, सांसारिक साधन-सामग्री, और जीवन के उद्देश्य में एकरूपता या संगति होनी चाहिए। इनमें तालमेल नहीं होगा तो जीवन में रस कहाँ से आयेगा ? परन्तु कई व्यक्तियों को बाह्य कलात्मक ढंग से भी जीना नहीं आता । वे जीवन को जंगल या पशुओं का बाड़ा बना डालते हैं।
कलाहीन अस्वस्थ जीवन कुछ व्यक्तियों को सांसारिक सुख-साधन जोड़ने से ही फुरसत नहीं । वे अहर्निश हाय पैसा ! हाय पैसा !! करते रहते हैं । उनकी बातचीत का विषय ही रुपये पैसे होता है। सबेरे सात बजे घर से निकले तो रात के ११ बजे घर में कदम रखेंगे । घर पर कोई मेहमान आ जाये तो वह उसी प्रकार रहता है, जैसे किसी होटल में रहता है । न बन्धु-बान्धवों से मेल-जोल, न मित्रों का आना-जाना, न किसी सात्त्विक मनोरंजन से लगाव, न पुस्तकों से प्रेम, न किसी धर्मस्थान में जाना, न मन्दिर में । अमेरिका का प्रेसिडेंट आये या इंग्लैण्ड की महारानी, प्रधानमंत्री का भाषण हो, किसी प्रसिद्ध धर्माचार्य या साधु-साध्वी का प्रवचन हो, या कोई धर्मोत्सव, या पर्व, चीन का हमला हो या पड़ौसी की पीड़ा की कराह, इन पैसे के पुजारियों की चाल-ढाल में कोई अन्तर नहीं आता, कोई उत्साह की लहर नहीं आती। घर में बच्चे हैं, परन्तु वे स्कूल जाते या पढ़ते हैं या नहीं ? उनकी सेहत गिर रही है या अच्छी हो रही है ? इस वर्ष फेल हुए या पास? इससे उन्हें कोई सम्बन्ध नहीं। जिस घर में संरक्षक सिर्फ धन कमाने की मशीन ही हो, वहाँ यह आशा नहीं करनी चाहिए कि बच्चों का जीवन कलामय एवं स्वस्थ होगा।
कुछ व्यक्ति घर में ऐसे प्रवेश करते हैं, जैसे शेर घुस रहा हो। बच्चे देखते हैं और छिप जाते हैं । जिस घर में माँ-बाप की छाया से बच्चे भागते हैं, उसमें कदापि
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