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४ : आनन्द प्रवचन : भाग १२
खाद्य वस्तुएँ खा-पीकर गौरव मानता है। जो लोग सादा भोजन और सादे वस्त्र का उपयोग करते हैं, उन्हें वे हीनदृष्टि से देखते हैं, उन्हें हलके दर्जे के आदमी मानते हैं। यह विचारशक्ति का दिवाला है । कला पर कालिमा है।।
वर्तमान युग में अधिकांश व्यक्ति अपनी वास्तविक योग्यता, क्षमता, सद्गुणों आदि में वृद्धि न करके केवल बाहरी दिखावट, सजावट, फैशन, तड़क-भड़क के बल पर अपने को दूसरे से बड़ा-विशिष्ट बतलाना चाहते हैं । इसके लिए वे अपने साधनों
और शक्तियों का उचित से अधिक व्यय कर डालते हैं । जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं की उपेक्षा करके ऊपरी टाम-टीम या आडम्बर को कायम रखने का ज्यादा ध्यान रखते हैं । वे यह समझते हैं कि इस तरह शान से रहने के कारण हमें अन्य लोगों से अधिक इज्जत मिलेगी, सभी हमें बड़ा आदमी समझेंगे और हमें अधिक सुविधाओं या अधिकारों की प्राप्ति होगी। पर परिणाम प्रायः आशा से विपरीत होता है। अधिकतर लोग उनके नकलीपन को भांप जाते हैं और प्रत्यक्ष में नहीं तो, परोक्ष में उनकी हँसी उड़ाते हैं। अनेक लोग तो उनके मुह पर झूठी प्रशंसा करके उन्हें मूर्ख बनाने की चेष्टा भी करते हैं। कुछ ही समय में ऐसे व्यक्तियों की कलई खुल जाती है और इस अपव्यय के कारण वे निम्न कोटि का अभावग्रस्त जीवन बिताने को बाध्य होते हैं । परन्तु खेद है कि अधिकांश व्यक्तियों ने इस प्रकार विचारहीन, कृत्रिम जीवन-यापन को 'कला' मान लिया है।
फिर आजकल जमाने की रफ्तार के साथ-साथ प्रवाह में बहने वाले बहुत-से लोग नाइलोन, टेरीलिन, टेरीकोट के वस्त्र पहनने में अपनी शान समझते हैं, खादी पहनना अपनी शान के खिलाफ मानते हैं, जबकि नाइलोन, टेरोलिन आदि के कपड़े पहनने वालों की चमड़ी खराब हो जाती है, ये वस्त्र पसीने को सोखते नहीं, तथा इनसे रोमकूपों को हवा नहीं मिलती, जबकि खादी पसीने को सोख लेती है, रोमकूपों में खादी के कपड़े से हवा पहुँचती है, चर्मरोग होने का कोई अंदेशा नहीं रहता। फिर ये सब वस्त्र सँकड़े पतलून के रूप में पहने जाते हैं. जिनमें हवा का प्रवेश नहीं होता । क्या यह कला के नाम पर मनुष्य की अविचारशीलता की निशानी नहीं है ?
वेस्टरलैण्ड में कुछ वर्षों पहले चिकित्सकों का एक सम्मेलन हुआ था, उसमें हेम्बर्ग के प्रोप्रेसर 'ईफेन बर्जर' ने जो बात कही, वह आप सबके लिए विचारणीय है"हमारा पहनावा यदि अयोग्य होगा तो लम्बे समय बाद उसका बुरा प्रभाव हमारे शरीर पर पड़े बिना नहीं रहेगा।" ।
आज फैशन का पागलपन और पोजीशन का भूत लोगों को ऐसा लगा है कि वे इसके आवेश में न अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखते हैं, न अपव्यय का और न ही अपने गरीब देशवासियों का । फैशन के पागलपन के कारण कपड़े भी इतने तंग पहनते हैं कि वे कष्टदायक हो जाते हैं । नोकदार बूट, नाइलोन के मोजे, कॉलर आदि सब कष्टदायक हैं । यूरोप में ६५% महिलाओं के पैर के पंजे विकृत हो गये हैं।
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