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________________ २६२ : आनन्द प्रवचन : भाग १२ नेन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय और रसनेन्द्रिय- इस एक-एक इन्द्रिय की आसक्ति के कारण विनष्ट हुए, तो जो इन पाँचों इन्द्रियों के निग्रह के विषय में प्रमादी (असावधान) रहता है, वह क्यों नहीं विनष्ट होगा ?" मृग भोला-भाला वन में स्वतन्त्र विचरण करने वाला प्राणी है, किन्तु वही मृग जब संगीत की स्वरलहरियों पर मुग्ध होकर श्रोत्रन्द्रिय-विषय में आसक्त एवं असावधान हो जाता है और दौड़ता हुआ कानों में मधुर संगीत श्रवण करने हेतु आता है, तब शिकारी के शस्त्र प्रहार से बेचारा अपने प्राण गंवा बैठता है। हाथी इतना बलवान प्राणी है कि सहसा उसे वश में करना आसान नहीं, किन्तु हाथी को पकड़ने वाले उसे स्पर्शेन्द्रियविषय के जाल में फंसाते हैं। वे एक गहरा गड्डा खोदकर उसमें घास पत्तियाँ इस तरह से बिछा देते हैं ताकि ऊपर की सतह ठीक दीख सके, और उस पर कागज की हथिनी बनाकर रख देते हैं हाथी दूर से ही हथिनी को देखकर कामविवश होकर आता है, कामात होकर ज्यों ही नकली हथिनी के पास आता है, गड्ढे में गिर जाता है और पकड़ लिया जाता है । पतंगा प्रकाश--रूप को देखकर ही उस पर मोहित होकर टूट पड़ता है, और वहीं अपने प्राण खो बैठता है । यह नेत्र न्द्रियविषयासक्ति का परिणाम है। __ भौंरा भी सुगन्ध में लुब्ध होकर कमल के कोष में बन्द हो जाता है, सोचता है, अभी क्या जल्दी है, जब चाहूँगा तब बाहर निकल जाऊंगा। परन्तु अभागा भौंरा कमलकोष में बन्द होकर अपने प्राण खो बैठता है । अगर घ्राणेन्द्रियविषय में आसक्ति न होती तो भौंरे को कोई उसमें फंसा नहीं सकता था । और मछली, वह रसनेन्द्रियलोलुप बनकर आटे की गोली के लोभ में आकर काँटे में फंस जाती है और अपने प्राण खो देती है। जब ये अज्ञानी और बेसमझ प्राणी भी एक-एक इन्द्रिय के वशीभूत होकर अपनी हानि कर बैठते हैं, तब समझदार और शिक्षित होकर मनुष्य-पुत्र युवावर्ग अपनी पाँचों इन्द्रियों का असावधानीपूर्वक उपयोग करता है, उसकी कितनी हानि होगी? इससे आप अनुमान लगा सकते हैं। वास्तव में अजागृति या असावधानी ही इन्द्रियनिग्रह को दुष्कर बना देती है कई विद्वान् एवं शास्त्रज्ञ यह समझते हैं कि हम ज्ञानी हैं, हमें इन्द्रियाँ क्या बहकायेंगी? परन्तु उनकी जरा-सी असावधानी पलभर में उन्हें पतन की ओर ले जा सकती है। एक प्राचीन कथा है। वेदव्यासजी धर्मसूत्र की व्याख्या कर रहे थे तो एक सूत्र उनके सामने आया- 'बलवानिन्द्रियग्रामो विद्वांसमपि कर्षति'-इन्द्रियसमूह बलवान् है, वह विद्वान् को भी खींच लेता है। व्यासजी इसका अर्थ करते समय सोचने लगेजो विद्वान है वह इन्द्रियों के विषय में कैसे खिंच जाएगा ? क्योंकि विद्वान् का अर्थ हैभले-बुरे का, हिताहित का जानने वाला । सम्भव है, सूत्र में जरा भूल हो गई हो, मैं इसे सुधार हूँ उन्होंने सुधार करके इस प्रकार लिखा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004015
Book TitleAnand Pravachan Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1981
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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