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________________ यौवन में इन्द्रियनिग्रह दुष्कर : २६३ "बलवानिन्द्रियग्रामोऽविद्वांसमपि कर्षति-इन्द्रियगण बलवान है, वह अविद्वान् को भी खींच लेता है।" ऐसा लिखकर व्यासजी शौच को चले गये। नहा-धोकर जब वे वापस लौटने लगे तो एक प्रौढ़ कन्या, जो रूप में देवकन्या सदृश थी, दृष्टिगोचर हुई । सामने की गली से उसने व्यासजी को आवाज दी- "मुझे आने दीजिए। गली संकड़ी होने से आपका मेरे शरीर से स्पर्श न हो जाय क्योंकि मैं अभी कुआरी हूँ।" व्यासजी कन्या के सौन्दर्य और उसकी वाणी के माधुर्य से आश्चर्य-मग्न थे। अतः पीछे हटने के बजाय वे आगे बढ़ते ही गये । जब कन्या ने दुबारा कहा तो व्यासजी बोले- 'संकड़ी गली की परवाह मत करो, आजाओ, पास से निकल जाएंगे।" व्यासजी के न मुड़ने पर वह कन्या पीछे मुड़ चली। जब व्यासजी जरा तेज कदमों से आगे बढ़ने लगे तो वह कन्या यह कहती हुई अदृश्य हो गई-"बलवान इन्द्रियग्रामो विद्वांसमपि कर्षति ।" व्यासजी स्तब्ध होकर आकाश की ओर देखने लगे । वे मन ही मन समझ गये कि यह कोई कन्या नहीं थी, यह तो स्वयं वाग्देवी सरस्वती थी, जो मुझे मेरी गलती का भान कराने के लिए आई थी। घर आकर उन्होंने फिर धर्मसूत्र को उठाया और इस प्रकार संशोधन किया मात्रा स्वस्रा दुहित्रा वा न विविक्तासनो भवेत् । बलवानिन्द्रियग्रामो विद्वांसमपि कर्षति ॥ निष्कर्ष यह है कि विद्वान् को भी यह दावा नहीं करना चाहिए कि मैं इन्द्रियों पर क्यों निग्रह करूं ? मेरे तो इन्द्रियाँ वश में हैं ? उसे भी, इन्द्रियजयी होने पर भी प्रतिक्षण इन्द्रियों के उपयोग में सावधान रहना चाहिए। अगर प्रतिक्षण इन्द्रियों के उपयोग पर चौकसी रखी जाए तो कोई कारण नहीं कि इन्द्रियनिग्रह युवक के लिए दुष्कर हो। __ इन्द्रियाँ आत्मा की शत्र नहीं हैं, ये आत्मा की सुविधाजनक विकास यात्रा में सहायक उपकरण हैं, आत्मा के औजार हैं, सेवक हैं । इनकी सहायता से आत्मा के हित व कल्याण में बाधा नहीं पहुँचती, वरन् इन्हें साधनरूप मानकर इनका सदुपयोग किया जाए तो जीवन का मधुर रस चखता हुआ युवक अपना जीवन लक्ष्य पूरा कर सकता है । निःसन्देह इन्द्रियाँ बड़ी उपयोगी हैं। अतः किसी भी इन्द्रिय का उपयोग करना पाप नहीं है, जरूरत है सावधानीपूर्वक इनकी गतिविधि को संभालने की। जब भी कोई इन्द्रिय अपने विषय की ओर दौड़ने लगे, व्यक्ति तुरन्त सम्भल जाए। बड़ी सूक्ष्मता और चतुराई से यह देखता रहे कि इन्द्रियाँ कहीं अपनी इच्छा से मुझे घसीट तो नहीं रही हैं । इन्द्रियों का स्वभाव जानकर उन्हें सही मार्ग पर ले जाए तो इन्द्रियनिग्रह कठिन नहीं, सरल हो जाएगा। __ युवक के लिए इन्द्रियनिग्रह कठिन तो तब होता है, जब वह इन्द्रियों में इतना आसक्त हो जाता है कि वह आध्यात्मिक विज्ञान की ओर उन्मुख नहीं हो पाता । उसकी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004015
Book TitleAnand Pravachan Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1981
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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