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________________ २५२ : आनन्द प्रवचन : भाग १२ बात का उल्लेख माअभी-अभी कर गया हूँ। सक्रियता के दुरुपयोग को रोकने के लिए TER : NipHIF F EE THEATRE FFT: 11: मेरी दृष्टि से वर्तमान युग के तरुण की सारी शक्तियाँ इन्द्रियों में समाहित हैं, मन भी इन्द्रियों का संचालक होने से नोइन्द्रिय कहलाता है। इसलिए इन्द्रियों का ही साथी है । इन शक्तियों को दुरुपयोग से रोकने और सहपयोग में लगाने के लिए आत्मीयता भरा सही मार्गदर्शन तरुण को मिले तो आज के, तरुण की कर्तृत्वशक्ति को यथार्थ दिशा में मोड़ा जा सकता हैं जवानी की देहली पर पैर रखते ही उसे अपने अभिभाधकों, अग्रणी, व्यक्तियों और धर्मगुरुओं द्वारा उचित मार्ग-दर्शन आत्मीयता एवं स्नेह से परिपूर्ण प्रेरणा मिलनी चाहिए । अधिकांशु अभिभावक, जिनमें अधिकतर व्यवसायी हैं, उन्हें इतना कम अवकाश मिल पाता है कि वे अपनी यूवा संतति पर ध्यान नहीं दे पाते, प्रायः वे घर में आते हैं, तब भी युवक-युवतियों के माता-पिताओं से सामान्यतया पूछ लेते हैं, स्वयं उनके साथ घंटा, आधा घंटा बैठकर सहानुभूति से बात नहीं कर पाते । प्रायः वे तरुणों की गतिविधि पर ध्यान नहीं दे पाते । वे ऐसे समय में घर आते हैं, जबकि वे सो जाते हैं, और ऐसे समय में वे जाते हैं, जबकि वे अपने स्कूल या कॉलेज के पाठ्यक्रम के अध्ययन में लगे रहते हैं अथवा वे भी स्वयं अपने विद्यालय या महाविद्यालय जाने की तैयारी में होते है । - EPTET भभावक शशव रिकिश र-अवस्था. मे तो खूब लाड-प्यार करते 20प्यार करते भर कर हैं और यौवन अवस्था में पदार्पण करते ही उनके प्रति उपेक्षा करने लग जाते हैं, रास्ते । या दूसरे किसी यूवक की गलत M ETREETTE चेष्टाओं का उल्लेख उनके सामने करके उन्हें डाँटते हैं, भला-बुरा कहते हैं । " 1183 बहुत से बुजुर्ग अभिभावक युवकों को युग के अनुसार सही मार्गदर्शन नहीं कर सकते, वे युवक-युवतियों को सिर्फ पुराने ढर्रे पर ही चलाना चाहते हैं । वे युवकों की सही-गलत, उचित-अनुचित सभी प्रवृत्तियों पर सर्वथा रोक लगाने की कोशिश करते सवातक, अनुचित प्रवत्तियों को से इन्कार कर देते हैं, या उपेक्षा कर देते हैं, तब वे एकदम झल्लाकर कह बैठते हैं "आजकल के युवक किसी की कुछ सुनते-मानते नहीं, वे नित नहीं, अपनी मनमानी करते हैं। ।, ऐसा भी देखा जाता है कि बहुत से अनजान और युग की गतिविधि से अनभिज्ञ बुजुर्ग अभिभावक इसका निर्णय भी नहीं कर पाते, कि उन्हें नवयुवकों को किस ओर ले जाना है, ? उनकी इन्द्रियों में जो विलक्षण कर्तृत्व शक्ति है, उसे किस ओर मोड़ा जाय । समाज के अग्रणी तो युवकों के पारिवारिक मुखियानों से उसके स्वभाव के बारे में जरा सा पूछताछ करके मौन हो जाते हैं, वे युवकों से प्रत्यक्ष मिलकर भी डर होता कार्यों में आगे लाया जाएगा, तो समाज का नेतृत्व इनके हाथों में आ जाएगा, हमारे हाथ से समाज का नेतृत्व चला जाएगा, हमें फिर कोई नहीं पूछेगा । अपने बुजुर्गों के बात ते । कि अगर यूवको को सामाजिक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004015
Book TitleAnand Pravachan Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1981
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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