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________________ ६५. यौवन में इन्द्रियनिग्रह दुष्कर धर्मप्रेमी बन्धुओ ! आज मैं जीवन की चार सुदुष्कर वस्तुओं में से चतुर्थ सुदुष्कर वस्तु के सम्बन्ध में प्रकाश डालूंगा। महर्षि गौतम ने चतुर्थ सुदुष्कर वस्तु बताई है-तरुणावस्था में इन्द्रियनिग्रह । गौतमकुलक का यह ८१वाँ जीवनसूत्र है। इसका शब्द-शरीर इस प्रकार है-- "तारुण्णए इंदियनिग्गहोय, चत्तारि एयाणि सुदुक्कराणि ।" अर्थात्-युवावस्था में इन्द्रियनिग्रह सुदुष्कर है । तथा ये ( पूर्वोक्त ) चारों वस्तुएँ सुदुष्कर हैं। तरुणावस्था क्या है ? उसमें इन्द्रियनिग्रह क्यों दुष्कर है ? आदि प्रश्नों पर गहराई से विचार करना आवश्यक है ? युवक, युवावस्था और कर्तृत्व-शक्ति यौवन एक सन्धि काल है-कैशोर्य और तारुण्य का । शैशव अधिकांशतः खेलकूद में बीतता है, किशोरावस्था में जीवन का निर्माण प्रारम्भ हो जाता है, और तरुणावस्था में निर्माण की क्रिया पूरे वर्ग से चलती है। जीवन की सक्रियता और उसका यथार्थ आरम्भ यौवन से होता है। संस्कृत भाषा के अनुसार 'य मिश्रणा मिश्रणयोः' अर्थात् यु 'धातु' मिश्रण और अमिश्रण, इन दोनों अर्थों में प्रयुक्त होता है, उसी से यौवन शब्द बना है । यौवन शब्द का अर्थ है-किशोरावस्था का मिश्रण और वृद्धावस्था का अमिश्रण । यौवन वृद्धावस्था से अभी बहुत दूर पड़ जाता है। इसलिए यौवन का वृद्धावस्था से मेल नहीं खाता । हाँ, यौवन किशोरावस्था के निकट होता है, इसलिए वह किशोरावस्था के साथ घुला-मिला होता है। यही कारण है कि युवक में बुजुर्गों जैसी गम्भीरता नहीं, उनके जितना गहरा अनुभव और धैर्य नहीं होता, दूसरी ओर उनमें किशोरों की तरह अत्यधिक खेल-कूद, व्यर्थ के वाद-विवाद, उखाड़-पछाड़, हास्य-विनोद और बेफिक्री होती है, जिम्मेवारी का भान व कर्तव्य पालन की चिन्ता प्रायः नहीं होती। तीसरी ओर युवकों को अपनी शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक एवं ऐन्द्रियक शक्तियों के सदुपयोग का अनुभव प्रायः नहीं होता । अनुभव न होने से उनकी कर्तृत्व शक्ति प्रायः पाँचों इन्द्रियों के विषयों का उन्मुक्त Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004015
Book TitleAnand Pravachan Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1981
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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