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________________ सुखोपभोगी के लिए इच्छानिरोध दुष्कर : २४६ 1 इच्छाओं पर संयम ही शारीरिक, मानसिक एवं आत्मिक विकास के लिए अनिवार्य है । जो व्यक्ति जितना ही इच्छाओं पर संयमी होगा. उसका व्यक्तित्व उतना ही प्रखर, तेजस्वी और सामर्थ्यवान् होगा । यदि वह विषय-भोगों में रस लेने लगा तो इच्छाएँ चारों ओर से घेरकर उसके संयम के तटबन्ध को तोड़ देंगी । इच्छाओं पर संयम करने से जिन-जिन चीजों के उपभोग कर दैनिक जीवन में जरूरत है, वे चीजें तो उसे अनायास ही प्राप्त हो जाएँगी, फिर उनके भोगों की इच्छा को तीव्र बनाने से क्या लाभ ? अतः इच्छाओं का त्याग भोगों में अत्यन्त लुब्ध व्यक्ति के लिए अवश्य दुष्कर है, परन्तु उनमें आसक्त व्यक्ति सुख भी तो नहीं प्राप्त कर सकता । इसीलिए महर्षि गौतम ने कहा है S KO 6 18 605 BFF "इच्छानि रोही य सुहोइयस्सदुक्क सुखोपभोग की इच्छा करने वाले के लिए इच्छानिरोध करना बड़ा कठिन है। Jain Education International For Personal & Private Use Only ire: E www.jainelibrary.org
SR No.004015
Book TitleAnand Pravachan Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1981
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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