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सुखोपभोगी के लिए इच्छानिरोध दुष्कर : २४७ चकाचौंध से अलिप्त, अनासक्त, अप्रभावित-से रहते थे। एक सुनार ने उनकी इस अलिप्तता की परीक्षा भी ली थी, जिसमें भरत चक्रवर्ती उत्तीर्ण हुए।
एक ऐतिहासिक उदाहरण लीजिए___ एक राजा बहुत दूर जंगल में चला गया, उलटी रास के घोड़े ने राजा को संकट में डाल दिया; भूखा-प्यासा, हारा-थका, एवं भूला-भटका राजा वहीं एक जगह बेभान होकर गिर पड़ा। बकरी चराने वाली एक भील की लड़की ने राजा को इस हालत में देखा तो उसके हृदय में दया उत्पन्न हुई । वह निकट आई। अपने पास जो पानी की घड़िया थी, उसमें से पानी लेकर राजा के मुंह पर छींटा, जिससे राजा होश में आया। फिर उस भील-पुत्री ने कहा- "मालूम होता है आप बहुत थके हुए और भूखे-प्यासे हैं, लीजिए पानी तो पी लीजिए और हमारा भौंपड़ा पावन करिये । वहाँ आराम करके फिर रोटी खा लीजिए।" भीलपुत्री नहीं जानती थी कि यह राजा है, एक अपरिचित को दुःख में देख उसके दया और सहानुभूति उमड़ी थी। वह राजा को अपने भौंपड़े पर ले गई । भील ने राजा का खूब सत्कार किया। एक खटिया पर बिछोना बिछाकर राजा को आराम करने के लिए कहा । फिर रोटी बनवाई। छाछ घर में थी ही । एक कटोरे में छाछ तथा थाली में मोटी रोटी लेकर भील ने राजा से कहा-लीजिए, यह ताजी छाछ और रोटी खाइए।" राजा रोटी खाकर अत्यन्त तृप्त हुआ। उसने लड़की की विनयशीलता, सहृदयता और सेवाभावना देखकर भील से कहा-“मेरी तुमसे एक माँग है भाई !"
"कहिये साहब, क्या चाहिए आपको ?" भील ने हाथ जोड़कर कहा ।
राजा-"तुम्हारी लड़की ने आज मुझं जीवनदान दिया है। अगर वह अभी तक कुआरी हो तो मेरे साथ उसका विवाह कर दो। मैं इस देश का राजा हूँ। उसे अपनी रानी बनाकर अपने ऋण का बदला चुकाना चाहता हूँ।
भील-"लड़की तो कूआरी है, पर आप बड़े राजा हैं, पालनहार हैं, हम तो तुच्छ भीलजाति के हैं, आपके तो और भी बहुत-सी रानियाँ होंगी। मेरी लड़की आपके महल में कहाँ शोभायमान होगी ।"
राजा-“यह तो मुझे देखना है तुम्हें तो अपनी स्वीकृति देनी है।"
भील-"आपके जैसे राजा को अपनी लड़की देना किसे पसन्द नहीं होगा। मैं अपनी कन्या आपको देने में खुश हूँ।"
राजा के साथ भील-कन्या का पाणिग्रहण हो गया । भीलकन्या को रानी बनाकर राजा ले आया ! समस्त शृंगारों से उसे सुशोभित किया। भीलनी रानी सोचने लगी–कहाँ मेरी जंगल की झौंपड़ी और कहाँ यह भव्य राजमहल ! कहाँ रूखी रोटी और छाछ और कहाँ प्रतिदिन मेवा मिष्ठान ! कहाँ फटे-टूटे सादे कपड़े और कहाँ जरी के वस्त्र ! कहाँ मेरे चिरमी के हार और कहाँ हीरों का हार एवं मूल्यवान आभूषण ! इन सुख साधनों को पाकर मैं अभिमान में कहीं अपने वास्तविक स्वरूप
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