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सुखोपभोगी के लिए इच्छानिरोध दुष्कर : २४३ शिक्षण से सम्बन्धित है, वहाँ मनोरंजन इन विशिष्ट चेतनाओं को विश्राम देने एवं सुख प्राप्त कराने के लिए होता है।
यह सब सिद्ध करता है कि मनुष्य इच्छाओं का पुतला है और आकांक्षाएँ उसका जीवन हैं । इच्छाओं और आकांक्षाओं के चक्कों पर ही मनुष्य-जीवन की गाड़ी दौड़ती है परन्तु इच्छाएँ किस स्तर की हैं इस पर से ही व्यक्ति की कार्य-पद्धति, विचारों और व्यवहारों से पता लग जाता है । कुछ ऐसी मोटी कसौटियाँ भी हैं जिनसे मनुष्य की इच्छाओं का निर्णय किया जा सकता है । जैसे व्यभिचारी और कामुक व्यक्ति की आँखों से निर्लज्जता टपकती रहती है, चोर, डाकू और बदमाशों के चेहरे पर एक नृशंस डरावनपन छाया रहता है, सदाचारी, सौम्य और सज्जन स्वभाव के व्यक्तियों की मुखाकृति बता देती है कि यह व्यक्ति सात्विक स्वभाव का है, विचारयुक्त और गम्भीर मुंह कह देता है कि यह व्यक्ति विद्वान् और विचारशील है।
____ इसलिए यह सत्य है कि इच्छाओं के विभिन्न स्तर हैं। छोटे स्तर के प्राणी शरीर-सुख तक अपनी महत्त्वाकांक्षाएँ सीमित रखते हैं । इन्द्रिय-चेतना तक में सीमित जीव पेट और प्रजनन का यानी इन्द्रिय-लिप्सा अथवा शारीरिक सुविधा भर की बात सोचता है, उसी का तानबाना बुनता है । वह वैसे साधन मिलने पर सुखी और न मिलने पर दु:खी होता है।
इससे ऊँचा स्तर मनश्चेतना की प्रधानता का होता है। इसमें अहंता प्रबल होती है । दूसरों की तुलना में अपने को बड़ा सिद्ध करने के लिए अनेक योजनाएँ बनाता है । यश पाने और अपनी वरिष्ठता सिद्ध करने के लिए लोग कितने ही प्रकार की प्रतिस्पर्धाओं में उतरते हैं, कितने ही प्रकार के प्रदर्शन करते हैं, अमीरों के ठाठ-बाट बनाते और अपनी ओर लोगों को आकर्षित करने का प्रयत्न करते हैं। संसार की आधी हलचलें शारीरिक सुख के लिए और आधी बड़प्पन पाने की अभिलाषा से प्रेरित होती हैं। ऐसे स्तर के लोग अपनी प्रतिभा, योग्यता, अमीरी, पदवी आदि के सहारे ही अपना बड़प्पन सिद्ध नहीं करते, वरन्, गुण्डागर्दी जैसी आततायी आक्रमणकारी गतिविधियाँ अपनाने में यही वृति विकृत बनकर काम करती है । डाकू भी बहुधा हीरो कुनने की ललक से ग्रस्त पाये जाते हैं। धन से बढ़कर लोगों के मन में चर्चा का विषय बक्ते की इच्छा प्रबल होती है। धर्माडम्बर, स्मारक निर्माण, फैशन, ठाठ-बाट, शृंगारिकता आदि के पीछे भी यही यशलोलुपता ही मुख्यतया काम करती है।
___ मनुष्य की स्थल चेतना में पहले शरीर और बाद में मन आता है । इच्छाओं के ये दोनों स्तर प्रधानतया भौतिक हैं । इसलिए इनकी अभिलाषाएँ भी ऐसी हैं, जो भौतिक पदार्थों की सहायता से तृप्त हो सकें।
इन्द्रिय-सुख प्रिय पदार्थों से मिलते हैं। कामवासनाजन्य सुख भी साथी की शारीरिक स्थिति की अपेक्षा रखता है । इस प्रकार के लाभों को वासना कहते हैं, जो
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