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मूलस्रोत
सव्वा कला धम्मकला जिणाइ, सव्वा कहा धम्मकहा जिणाइ। सव्वं बलं धम्मबलं जिणाइ, सव्वं सुहं धम्मसुहं जिणाइ ॥१६॥
सभी कला में श्रेष्ठ जगत में धर्मकला । सभी कथा में श्रेष्ठ जगत में धर्मकथा ॥ सभी बलों में उत्तम धर्मबल मानिए। सभी सुखों में श्रेष्ठ धर्म-सुख जानिए ।
जूए पसत्तस्स धणस्स नासो, मंसं पसत्तस्स दयाइ नासो। मज्जं पसत्तस्स जसस्स नासो, वेसा पसत्तस्स कुलस्स नासो॥१७॥
होता है धन-नाश द्यत खिलाड़ी का । हृदय दया से हीन मांस-आहारी का । मद्यप जन का यश-विवेक मिट जाता है । वेश्यागामो का कुल-गौरव क्षय हो जाता है ।
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