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________________ समर्थ के लिए क्षान्ति दुष्कर : २२७ विविध प्रभुतासम्पन्न समर्थ लोगों की दुष्कर क्षमाएँ वास्तव में शक्ति, प्रभुता और अधिकार से सम्पन्न समर्थ लोगों के लिए क्षमा एवं सहिष्णुता अतीव दुष्कर-कठिन है; तथापि ऐसे समर्थों की क्षमा अनेकों को उत्तम विचारधारा की प्रेरणा देती है। समर्थ मालिक की नौकर के प्रति क्षमा हुसैन पैगम्बर मोहम्मद के नाती थे। रहने के लिए आलीशान मकान था, उनकी थैलियाँ अशर्फियों से भरी रहती थीं। उन्हें नाराज करना एक धनिक को नाराज करना था । धनिक का क्रोध बड़ा भयंकर होता है। उनके लिए क्षमा करना बहुत ही दुष्कर होता है । एक दिन की बात है एक गुलाम खौलते हुए पानी का बर्तन लिए हुसैन के पास से गुजरा । वे भोजन कर रहे थे। दुर्भाग्य से पानी उछलकर उन पर गिर गया। वे क्रोध से झल्ला उठे। गुलाम घुटने टेककर बैठ गया। उसका मन इतना शान्त एवं स्वस्थ था कि उसे कुरान की आयत याद आ गई–'स्वर्ग उन लोगों के लिए है, जो अपने क्रोध को वश में रखते हैं।' हुसैन ने कहा- "मैं क्रोधित नहीं हूँ, मैंने आयत के शब्दों का अर्थ समझ लिया है।" गुलाम ने आगे कहा-"और स्वर्ग उन लोगों के लिए है, जो मनुष्यों को क्षमा करते हैं।" हुसैन-“मैं तुझे क्षमा करता हूँ।" गुलाम ने अन्त में कहा-"क्योंकि खुदा रहमदिल (दयालु) व्यक्तियों को प्यार करता है।" इस बातचीत के समाप्त होते-होते हुसैन का सारा गुस्सा काफूर हो गया। उन्होंने अनुभव किया कि उनका हृदय अत्यन्त कोमल हो उठा है । गुलाम को उठाते हुए उन्होंने कहा-'ले ये ४०० दिनार, आज से तू स्वतन्त्र है।" इस प्रकार हुसैन ने अपने उतावले आवेशयुक्त मन पर सहसा लगाम लगानी सीखी। प्रभुत्वसम्पन्न राजा को क्षमा राजा लोग समर्थ एवं प्रभुत्वसम्पन्न होते हैं। पर जो उदार एवं विचारक राजा होता है, वह अपने प्रति प्रहार करने वाले पर भी सहसा गर्म नहीं होता, न घोर दण्ड देता है । पाश्चात्य विचारक थौमसन (Thomson) ने ठीक ही कहा है "It is easier for the generous to forgive than for the offender to ask forgiveness." अपराधी के लिए क्षमा मांगना उतना आसान नहीं है, जितना कि एक उदार व्यक्ति के लिए क्षमा करना । महाराजा रणजीतसिंह प्रातःकाल वायुसेवनार्थ जंगल की ओर जा रहे थे, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004015
Book TitleAnand Pravachan Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1981
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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