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________________ २२६ : आनन्द प्रवचन : भाग १२ मैं शक्तिशाली हूँ, इसका अर्थ यह नहीं है कि बड़े भाई पर अजमाऊँ । क्या इससे मेरी जीत हो जाएगी, नहीं-नहीं, यह तो मेरी हार होगी । मुझे शक्ति का प्रयोग दूसरी तरफ करके अपनी इन्द्रियों और मन पर विजय पानी चाहिए। बड़े भाई भरत के प्रति उन्हें करुणा आ गई तुरन्त ही उन्होंने अपनी मुष्टि पंचमुष्टिलोच करने और दीक्षा के लिए मस्तक ' में लगा दी । बाहुबलि अजेय एवं वन्दनीय हो गए क्षमा एवं करुणा की इस धारा में शक्ति को बहाकर । वे मुनि बन गए । कायोत्सर्ग में एकाग्र होने में उन्होंने अपनी पूरी शक्ति लगा दी । सचमुच, बाहुबलि की प्रभुत्व एवं सामर्थ्यशक्ति मुष्टि से भाई पर प्रहार करने में न लगकर पंचमुष्टिलोच करने में लगी । इसे ही कहते हैं— सामर्थ्य होते हुए भी क्षमा करना । क्षमा से आध्यात्मिक जीवन चमक उठता है । साधु-जीवन में जब प्रतीकार सामर्थ्य होते हुए भी क्षमा आ जाती है, तब चार चांद लग जाते हैं । क्षमामूर्ति गजसुकुमार आदि के उदाहरण तो हमारे सामने हैं ही। वर्तमान में भी दरियापुरी सम्प्रदाय के पूज्य श्री भ्रातृचन्द्रजी महाराज के जीवन की एक घटना हैएक बार वे कड़ी के उपाश्रय में विराजमान थे । उस समय उनकी दीक्षा को सिर्फ दस ही वर्ष हुए थे । वहाँ एक लालजी भाई भावसार नाम के दबंग आदमी थे । वैष्णव होते हुए भी प्रतिदिन जैन साधुओं के दर्शनार्थ आते थे । कड़ी के तालाब में मुस्लिम लड़के मछली मारते हों, उस समय यदि लालजी भाई पहुँच जाएँ तो वे डर कर भाग जाते । अतः मुस्लिम लड़कों ने लालजी भाई को अपना दुश्मन मान लिया । लालजी भाई के गुरु होने के कारण पूज्यश्री भ्रातृचन्द्रजी महाराज के प्रति भी उनको द्व ेषभाव जागा । एक दिन पूज्य भ्रातृचन्द्रजी महाराज शौचक्रिया के लिए स्थण्डिल भूमि को जा रहे थे, तभी इन्हें देखकर मुस्लिम लड़कों ने उन्हें घेर लिया और इनकी पीठ पर लकड़ी मारने लगे । महाराजश्री कायोत्सर्ग करके देहाध्यास छोड़कर खड़े रहे । वे सोचने लगे -- ' गुरुदेव ने मुझे क्षमा का पाठ पढ़ाया है, मैं वास्तव में शान्त हूँ या नहीं ? इसकी कसौटी हो रही है ।' वे इस प्रकार चिन्तन में इतने डूब गये कि लकड़ी की कहाँ लगी, इसकी खबर भी न पड़ी । लड़कों ने लकड़ी का इतना प्रहार किया कि वह टूट गई । तब भयभ्रान्त होकर वे भाग गए । मार की असह्य पीड़ा थी, फिर भी पूज्य गुरुदेव शान्ति से सहते रहे, उन्होंने किसी से कहा नहीं, क्योंकि वे जानते थे कि किसी के आगे कहने से फिर मुस्लिम लड़कों को मार पड़ेगी । धर्मरुचि अनगार की आदर्श जीवन गाथा, उनके हृदय में रम रही थी । अतः किसी से न कहकर चुपचाप उपाश्रय में आए, मार के निशानों को उन्होंने वस्त्र से ढक लिया । वे समर्थ थे, चाहते तो हल्ला मचाकर लोगों को इकट्ठा कर सकते थे, श्रावकों से कहकर उन लड़कों को पिटवा सकते थे, परन्तु उन्होंने इसे चुपचाप सहन किया । धन्य है आपकी सहिष्णुता एवं क्षमा को ! Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004015
Book TitleAnand Pravachan Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1981
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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