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________________ समर्थ के लिए क्षान्ति दुष्कर : २१७ प्रसिद्ध विचारक कोल्टन ( Colton ) ने ठीक ही कहा है "Power will intoxicate the best hearts, as wine the strongest heads." " जिस प्रकार शराब सुदृढ़ मस्तिष्कों को उन्मत्त कर देती है, उसी प्रकार सत्ता की शक्ति भी अच्छे हृदयों को उन्मत्त कर देती है ।" बड़े-बड़े शक्तिशाली राजा सत्ता के नशे में उन्मत्त होते देखे गये हैं । देवगढ़ के तत्कालीन रावसाहब ने एक बनिये से कोई सौदा लिया । उसकी कीमत उस समय नहीं चुकाई गई । उसके कुछ ही दिनों बाद बनिया रावसाहब के पास गया । उसने उनसे बकाया रुपयों के चुका देने की नम्रतापूर्वक प्रार्थना की । किन्तु रावसाहब सत्ता के मद में बोल उठे - " तुम्हारे रुपये चुका दिये गये हैं, फिर तुम दुबारा क्यों आये, रुपये माँगने ?” उस बनिये ने बहुत ही विनयपूर्वक कहा - " अन्नदाता ! ऐसी बात नहीं है । अगर मुझे अपनी दुकान से लिए हुए माल के रुपये मिल जाते तो मैं क्यों आपसे प्रार्थना करने आता ?" इस पर रावसाहब गुस्से में आकर बोले - " बड़ा सत्यवादी हरिश्चन्द्र बन रहा है । सिपाहियो ! पकड़ लो, इस लोभी बनिये को । इसके मलद्वार में खूंटा ठोककर इसकी अक्ल ठिकाने ला दो ।" बनिया बेचारा बहुत गिड़गिड़ाया किन देना हो तो न दें; पर मेरी दुर्गति तो न करें । पर उसकी एक न सुनी। बेचारा तड़प-तड़प कर मर गया । उच्चत्व शक्ति के मद में सवर्ण लोग अपने को उच्च मानकर शूद्रवर्ण के लोगों को नीच, अछूत कहकर उनका तिरस्कार और अपमान करते थे । ब्राह्मण वर्ण स्वार्थवश क्षत्रिय, वैश्यों को उच्चवर्ण के होने का फतवा दे दिया और सेवा करने वाले वर्ग को अछूत, नीच और घृणित कहकर उसे दुरदुराया, उसे शिक्षा-दीक्षा, संस्कार, भगवद्भक्ति, धर्मश्रवण आदि से वंचित रखा। इस प्रकार सवर्ण लोग प्रभु बन गये और उन्हें गुलाम बनकर रहने को विवश कर दिया । आए दिन इन सवर्ण प्रभुओं द्वारा हरिजनों, ढेढ़ों, चमारों आदि पर अत्याचार होते रहते थे । 'समरथ को नहि दोष गुसाई' कहकर इन सवर्ण समर्थों की ओर से जो कुछ भी अन्याय, अत्याचार, अपमान, तिरस्कार आदि किया जाता, उसे दोष नहीं हुआ कि लाखों हिन्दू (वैदिक धर्मी) मुस्लिम एवं करोड़ों बनते जा रहे हैं । Jain Education International समझा जाता था। नतीजा यह ईसाई बन गए, और अब भी अब सुनिये उन पतियों का हाल, उन्होंने भी पुरुषत्व शक्ति के मद में स्त्रियों को पैर की जूती, सन्तान पैदा करने की मशीन, पति की उचित - अनुचित सभी आज्ञाओं को बिना तर्क-वितर्क किये मानने वाली, माना है । पत्नी को अपने पति को प्रभु मानकर सदैव उसकी सेवा करनी चाहिए, उसकी आज्ञा अनुचित हो तो भी चुपचाप पालन करनी चाहिए । पत्नी बीमार पड़ जाए या शरीर आदि से असमर्थ ( लाचार ) हो जाए For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004015
Book TitleAnand Pravachan Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1981
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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