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________________ २१८ | आनन्द प्रवचन : भाग १२ तो पति उसकी सेवा नहीं करता, न ही उसके बदले में कोई काम कर सकता है । इस प्रकार के भ्रान्त विचार पुरुषत्व के मद के कारण पतियों के बने । परन्तु भारतीय धर्म एवं संस्कृति पति और पत्नी दोनों का समानाधिकार मानती है । परन्तु पुरुषत्वरूप प्रभुता में मदान्ध पतिगण इस बात को समझें तब न ? अनुचित बात को न मानने पर पत्नी को मार-पीट दी, घर से निकाल दी, जला दी, विष दे दिया, आत्महत्या करने को विवश कर दी, छोड़ दी; एक पत्नी के जीवित रहते दूसरी ले आए। यह सब असंस्कारी पति-प्रभुओं का हाल है। अब रहे पदाधिकारी, राज्याधिकारी, नेतागण आदि । इनका भी बुरा हाल है, भारत में तो। प्रायः अधिकार या पद की शक्ति के मद में पदाधिकारी, राज्यधिकारी या नेतागण साधारण व्यक्तियों से तो सीधे मुंह बात भी नहीं करते । सभी सरकारी महकमों में नीचे से लेकर ऊपर तक प्राय: रिश्वतखोरी का बाजार गर्म है। जब भी किसी कार्य के लिये कोई गरीब, अन्याय-पीड़ित, दुःखी उनके पास जाएगा, तो सबसे पहले तो चपरासी ही नहीं घुसने देगा अगर वह किसी की सिफारिश से या चपरासी को दक्षिणा देकर आफिस में प्रविष्ट हो गया तो भी आफिसर सौ बहाने बनाएगा, टालमटूल करेगा, जब तक उसे तगड़ी दक्षिणा न दी जाएगी, तब तक वह कुछ भी काम करके न देगा, वह जनता की सेवा तो क्या, कुसेवा ही अधिकांशतः करता है। जनता को डांटना, फटकारना, धमकी देना आदि तो उनके आए दिन का काम है । और पुलिस विभाग के प्रभुओं का हाल तो इससे भी बुरा है। वहाँ तो निर्दोष को भी फंसाने, धमकी देने और मारने-पीटने के काण्ड आए दिन होते रहते हैं । जब तक उनकी जेबें गर्म नहीं की जाती, तब तक कुछ भी काम नहीं करके देते । प्रायः दोनों पक्षों की ओर से घूस लेकर मामले को ठंडा कर देते हैं । आश्वासन दोनों पक्षों को देते रहते हैं । यह है पुलिस विभागीय प्रभुत्व का मद । नेतागण अपने को वोट के समय तो जनता के सेवक कहते हैं किन्तु चुनाव समाप्त होते ही, एम० एल० ए०, एम० पी० या कोई मंत्री पद पर पहुँच गए कि आँखें फेर लेते हैं । फिर उन्हें जनता की कोई परवाह नहीं होती । प्राय: नेतगण जनता को अपने से नीची समझकर उसे भी डांटते-फटकारते रहते हैं। इसीलिए गोस्वामी तुलसीदास ने स्पष्ट कह दिया था "प्रभुता पाय काहि मद नाही" प्रभुता पाकर किसे मद नहीं होता ? अर्थात् सबको होता है। समर्थ के लिए क्षमा कितनी दुष्कर, कितनो सुकर ? प्रायः यह देखा जाता है कि जो व्यक्ति किसी प्रकार की प्रभुता या शक्ति से सम्पन्न होता है, उसके लिए झटपट अपने पर कंट्रोल करना, कुछ भी प्रतिकार न करना, चुपचाप बैठे रहना अशक्य होता है। उसमें नम्रता, मृदुता, सहिष्णुता, प्रिय Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004015
Book TitleAnand Pravachan Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1981
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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