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________________ दरिद्र के लिए दान दुष्कर : २०६ से उसे प्रतिदिन खाने के लिए भोजन मिलता था। आज उपवास के कारण उसने वह भोजन बचाकर रखा था । संयोगवश एक सेवाभावी मुनि भिक्षा के लिए पधार रहे थे, उन्हें विनति करके वह अपने घर लाया और अत्यन्त उत्कट भाव से जो भोजन सेठ से अपने हिस्से का मिला था, सबका सब मुनि के पात्र में दे दिया। उन शुभ भावों के कारण उसने शुभ गति और शुभ-योनि का आयुष्य बंध किया। यह है गरीब के दान का महत्त्व ! वस्तुतः चारुमति के पास धन न होने से वह दान देना दुष्कर समझता था। किन्तु उसके मन में दान का दीपक प्रज्वलित हो गया था, उसने दान किसी प्रकार की नामना या कामना की दृष्टि से नहीं दिया, दिया था-केवल धर्माचरण करने के लिए। यद्यपि रुपये-पैसों में उसकी दी हुई वस्तु का मूल्यांकन करें तो उसका मूल्य लाख रुपयों के दान के आगे कुछ नहीं था, लेकिन दान के पीछे तो भावों की गणना की जाती है, सिक्कों को नहीं । दान की कमाई तो भावों पर निर्भर है। बाजार में चीजों के भाव बढ़ते हैं, तभी व्यापारी निहाल हो जाता है । ऊँचे भावों के कारण थोड़ी-सी वस्तु के बहुत दाम आते हैं। इसी प्रकार दान में भी भावों की उछाल के कारण दान का मूल्य बढ़ जाता है । चन्दनबाला उस समय एक दरिद्र दासी के रूप में थी। उसके पास अपनी सम्पत्ति कुछ भी नहीं थी। जो कुछ था, वह धनावह सेठ का । बल्कि चन्दनबाला तो उस समय बिलकुल फटेहाल, भूखी, प्यासी और पराधीन थी, सिर्फ एक कच्छा पहने हुए, मस्तक मुडी हुई और हथकड़ियों-बेड़ियों में जकड़ी हुई । धनावह सेठ उसे तीन उपवास के पारणे के लिए सिर्फ उड़द के बाकले दे गया था। परन्तु इतनी दीन-हीनपरवश चन्दनबाला के मन में दान देकर पारणा करने की भावना उमड़ी । संयोगवश कठोर अभिग्रहधारक भगवान् महावीर पधार गए। उन्होंने अपने मनःसंकल्पित अभिग्रह की १३ बातों में से सिर्फ एक बात की कमी देखी-'आँखों में अश्र'; इसलिए लौटने लगे। बस, चन्दनबाला की आँखों से अश्र धारा बह निकली । दीर्घतपस्वी भगवान् वापस मुड़े। चन्दनबाला ने अपने पारणे के लिए रखे हुए वे उड़द के बाकले प्रबल भावनापूर्वक भगवान् महावीर को दे दिये । वह धन्य हो उठी। उड़द के बाकलों का क्या मूल्य था ? मूल्य तो भावना का था, जिसने चन्दनबाला को दान के माध्यम से उच्चपद पर पहुँचा दिया। विदुरानी के केले के छिलकों का क्या महत्व था ? परन्तु कर्मयोगी श्रीकृष्ण ने विदुरानी के दिये हुए केले के छिलकों को न देखकर उसके पवित्र भावों को देखा और उसका वह भोजन स्वीकृत किया। शबरी के दिये हुए झठे बेरों का मूल्यांकन क्यों इतना अधिक किया गया है ? इसीलिए कि उसके पीछे उत्कट भक्तिभावना थी। निष्कर्ष यह है कि दीन-हीन-निर्धन के द्वारा दिया हुआ तुच्छ पदार्थ का दान Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004015
Book TitleAnand Pravachan Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1981
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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