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________________ दरिद्र के लिए दान दुष्कर : २०३ निष्कर्ष यह है कि साधनों का अभाव दान देने में बाधक नहीं, अगर मनुष्य का मन उदार है, उसकी बुद्धि दान के प्रति श्रद्धा से ओत-प्रोत है, तो धन और साधन न होते हुए भी मनुष्य दरिद्र नहीं है । दिया हुया निष्काम दान कई गुना अधिक मिलता है कई लोग कहा करते हैं, जिनमें कई तो कृपणवृत्ति के हैं और कई नास्तिक प्रकृति के हैं, कि दान क्यों दिया जाए किसी को ? दान देने से भिखमंगों और याचकों की संख्या बढ़ती जाएगी, वे पुरुषार्थहीन हो जाएँगे, दूसरी बात यह है, जो लोग अभावग्रस्त हैं, वे अपने पूर्वकृत कर्मों का फल भोग रहे हैं, हमें उनके कर्मों को भोगने में दान के रूप में सहायता देकर अन्तराय क्यों डालना चाहिए ? तीसरी बात यह है, कि कई लोग कहते हैं- हम क्यों किसी को दान दें ? क्या वह हमारे यहाँ कुछ रख गया था, जो हम उसे दें अथवा उसके पिता ने हमारे यहाँ कुछ जमा किया था, जो हम से माँगता है ? ये और इस प्रकार के बहाने दान न देने के हैं। यह ठीक है कि दान में विवेक तो अवश्य करना चाहिए। जिनका भीख माँगने का पेशा ही है, जो सुबह से शाम तक दूकान-दूकान से पैसा ही बटोरने का धन्धा करते हैं, उनसे हाथ जोड़कर कहा जा सकता है--आप भूखे हों तो हम भोजन करा सकते हैं, और किसी चीज की अत्यन्त आवश्यकता हो तो हमारी शक्ति अनुसार दे सकते हैं। परन्तु पंसा तो नहीं दिया जा सकता, आपको। आप चाहें तो हम आपको मेहनत-मजदूरी का काम दे या दिला सकते हैं । परन्तु जो लोग सचमुच अभावग्रस्त हैं, उन्हें उनके पापकर्मों का फल भोगने का कहकर टरकाना तो शोभा नहीं देता। इस प्रकार का बहाना करने से आपके दानान्तराय कर्म का बन्ध होना संभव है। आप यदि स्वयं अभावग्रस्त हों, और उस समय आपको कोई कहे कि आप अपने कर्मों का फल भोगें, हम आपके कर्मफल भोगने में अन्तराय क्यों दें ? तो आपको कितना बुरा लगेगा ? कितना आघात लगेगा आपको ? संभव है, आपके निमित्त से ही अभावग्रस्त व्यक्ति का अन्तराय टूटने वाला हो, उसको लाभ मिलने वाला हो। आपके द्वार पर आये हुए किसी अभावग्रस्त, पीड़ित एवं दीन-हीन को अगर कुछ आपने दे दिया, सहायता पहुँचा दी तो क्या उससे आपके पास कुछ कमी हो जाएगी। यह तो एक भ्रम है कि किसी को देने से कमी हो जाएगी। प्रत्येक मानवीय शक्ति सदुपयोग से बढ़ती है। दान देने से लक्ष्मी बढ़ती है, ज्ञान देने से ज्ञान की वृद्धि होती है, किसी को सम्मान देने से सम्मान बढ़ता है, सुख देने से सुख बढ़ता है। सचमुच सात्विक दान से ऐश्वर्य मिलता है, व्यक्तित्व का विकास होता है, मनुष्य का आत्मबल बढ़ता है और उसकी सहृदयता और सजीवता का परिचय मिलता है। दान और परोपकार के पीछे न जाने कितने Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004015
Book TitleAnand Pravachan Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1981
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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