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या दुष्कर? २५८, विजय सेठ विजया सेठानी का दृष्टान्त २५६, लक्ष्मणजी के इन्द्रियनिग्रह के तीन प्रसंग २६०, इन्द्रियनिग्रह : क्यों दुष्कर, कैसे सुकर ? २६१ इन्द्रियनिग्रह को दुष्करता का प्रथम कारण-जागृति का अभाव २६१, दूसरा कारण-इन्द्रियों में आसक्ति २६३, आदतों पर नियन्त्रण और निरीक्षण के अभाव में २६४, इन्द्रियों का दुरुपयोग भी दुष्करता का कारण २६५, इन्द्रियों में साथ मन का स्पर्श
होते रहने पर २६६ । ६६. जीवन अशाश्वत है
२६८-२७६ जीवन क्या है, क्या नहीं ? यह शाश्वत है या अशाश्वत ? २६६, अशाश्वत जीवन को भ्रमवश शाश्वत मानते हैं २७२, सेठ सेठानी का दृष्टान्त २७३, जीवन को अशाश्वत मानकर क्या करना ? २७६, प्रत्येकबुद्ध द्विमुख का .
दृष्टान्त २७८ । ६७. जिनोपदिष्ट धर्म का सम्यक् आचरण
२६०-२६५ विश्व के अनेक धर्म और जिनोपदिष्ट धर्म २८०, जिनोपदिष्ट धर्म क्या है ? २८१, जिनोपदिष्ट धर्म की विशेषताएं २८४, अनेकान्त २८४, धर्माचरण : सबके लिए २८४, मोक्ष : सबके लिए २८६, पतितों या शूद्रों को भी प्रवेश २८६, धर्मानुरूप समस्त लौकिक विधियों का स्वीकार २८८, समस्त आत्म-साधनाओं में समन्वय २८८, समस्त तत्त्वों का समन्वय २८६, सम्यग्दृष्टि के लिए सभी शास्त्र मान्य २८६, सभी भूमिकाओं के जैनधर्मी : विचारों में समान २८६, धर्म के आचरण पर जोर २६०, चीनी दार्शनिक 'ताओबू' का दृष्टान्त २६१, धर्म का आचरण ही सुफल लाता है २६२, चिलातीपुत्र का दृष्टान्त २६३, धर्म का आचरण करो, परन्तु सम्यकप में २६४, असम्यक् धर्माचरण के स्रोत २६४।
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