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दरिद्र के लिए दान वुडकर : २०१
वे अपने आपको कभी दीन-हीन नहीं समझते । अनन्तशक्तियों के धनी, अनन्तज्ञानदर्शन और सुख की समृद्धि से सम्पन्न महापुरुष भला कभी अपने आपको दीन-दरिद्र समझ सकते हैं ?
मैंने आपको अटपटी बात कह दी। आप कहेंगे, फिर दरिद्र किसे कहेंगे ? लोक व्यवहार में तो दरिद्र उसे ही कहते हैं, जिसके पास धन न हो, किन्तु शास्त्रीय दृष्टि से दरिद्र उसे कहते हैं, जिसके पास धन भी हो, अन्य साधन भी हों देने के लिए, लेकिन उसकी देने की भावना न हो, कृपण बनकर वह न किसी को देता है, न स्वयं उपभोग करता है । दरिद्र वस्तुतः वही है, जो अपने पास कुछ होते हुए भी देने की भावना न रखता हो ।
साधनों का अभाव : दान देने में बाधक नहीं
यह सत्य है कि जो मन का और बुद्धि का दरिद्र है, उसे अपने पास कुछ होते हुए भी दूसरों को देगा -- आवश्यकता हो उसे देकर उसके अभाव की पूर्ति करना, अखरता है । वह सोचता है, इतना धन कम हो जाएगा, अमुक वस्तु देने से कम हो जाएगी अथवा वह सोचने लगता है - मैं अकेला किस-किसको दूंगा ? अभावग्रस्त तो बहुत हैं, मैं तो एक ही हूँ । एक विचारक ने इसी शंका को उठाकर उसका सुन्दर समाधान प्रस्तुत किया है
एकोऽयं पृथिवीपतिः क्षितितले लक्षाधिका भिक्षु काः । कि कस्मै वितरिष्यतीति किमहो एतद् वृथा चिन्त्यते ॥ आस्ते किं प्रतियाचकं सुरतरुः, प्रत्यम्बुजं कि रविः ।
कि वाऽस्ति प्रतिचातक प्रतिलतागुल्मञ्च धाराधरः ॥
अर्थात् – 'अहो ! भूतल पर यह राजा तो एक ही है, लाख से अधिक भिक्ष ुक - याचक हैं, यह अकेला किस-किस को क्या देगा ? इस प्रकार की चिन्ता करना व्यर्थ है । क्या प्रत्येक याचक के लिए एक-एक कल्पवृक्ष है ? या प्रत्येक कमल को विकसित करने के लिए एक-एक सूर्य है अथवा प्रत्येक पपीहे के लिए या प्रत्येक लता और गुल्म के लिए एक-एक मेघ है ? ऐसा तो हजारों-लाखों को आवश्यकता पूर्ति करते हैं ।'
नहीं है । ये तो एक-एक ही
परन्तु जो मन और बुद्धि का दरिद्र नहीं है, वह सोचता है - 'मनुष्य अगर थोड़ा-सा शारीरिक और आर्थिक कष्ट उठाकर भी दूसरों का कष्ट दूर करे तो उसे एक प्रकार का अनिर्वचनीय आनन्द प्राप्त होता है । दूसरों को खिलाकर खाने में, अथवा भूखे रह जाने में भी आत्मतृप्ति का अनुभव होता है । इसके विपरीत, दूसरों को भूखे देखकर भी स्वयं अपना पेट भर लेने में आत्मग्लानि होती है । दूसरों को सुखी करने से मनुष्य को जो कृतकृत्यता की स्वयं अनुभूति होती है, वह अन्य उपाय से दुर्लभ है ।'
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