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________________ ६२ : दरिद्र के लिए दान दुष्कर धर्मप्रेमी बन्धुओ ! आज मैं आपके समक्ष जीवन की चार दुष्कर वस्तुओं में से प्रथम दुष्कर वस्तु पर प्रकाश डालूगा । महर्षि गौतम ने चार दुष्कर वस्तुओं में से सर्वप्रथम दुष्कर वस्तु बताई है -दरिद्र के लिए दान देना। गौतमकुलक का यह ७८वाँ जीवनसूत्र है; जिसका शब्दात्मक रूप इस प्रकार है . दाणं दरिहस्स..... सुदुक्करं -दरिद्र व्यक्ति के लिए दान देना अतिदुष्कर है । दरिद्र कौन ? किन वस्तुओं के अभाव में ? दरिद्र के लिए दान क्यों दुष्कर है ? इन प्रश्नों पर चिन्तन प्रस्तुत करने का प्रयत्न करू गा, जिससे आप इस जीवनसूत्र का हार्द समझ सकें। वास्तविक दरिद्र कौन ? किन वस्तुओं के अभाव में ? आज दरिद्र किसे कहा जाए ? यही एक समस्या है। कई लोग धन से दरिद्र होते हैं, कई मन से और कई बुद्धि से । धन के अभाव में जो दरिद्र होते हैं, उन्हें सर्वसाधारण दरिद्र कहते हैं । धन का अभाव मनुष्य को दीन-हीन बना देता है। परन्तु विचारकों का कहना है कि जो व्यक्ति धनाभाव से ग्रस्त तो हो, परन्तु जो मन से उदार है, बुद्धि से उदार है वह व्यक्ति धन का अभाव होते हुए भी वास्तव में दरिद्र नहीं है । साधुओं के पास धन का बिलकुल अभाव होता है, तीर्थंकर तक भी अकिंचन और अपरिग्रही होते हैं, उनके पास भौतिक धन का एक अंश भी नहीं होता, परन्तु धन का अभाव होते हुए भी वे मन, बुद्धि और वाणी से उदार होते हैं, वे कथमपि दरिद्र नहीं होते। वे अभयदाता, चक्षुदाता, मार्गदाता, शरणदाता, जीवनदाता, बोधिदाता, धर्मदाता आदि होते हैं। वे अपनी ओर से सर्वस्व लुटाते हैं, जो भी जिज्ञासु याचक उनके पास जाता है, वह कुछ न कुछ पाता है। उन्हें सांसारिक प्राणियों को इस प्रकार का दान देकर आत्मसन्तोष होता है, आत्मतृप्ति होती है, १. 'अभयदयाणं चक्खुदयाणं मग्गदयाणं सरणदयाण जीवदयाणं बोहिदयाणं धम्मदयाणं ... ... .." ।' -शकस्तव (नमोत्थुणं) पाठ, आवश्यक सूत्र । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004015
Book TitleAnand Pravachan Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1981
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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