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परस्त्री-आसक्ति से सर्वनाश : १२६
'तहा परस्थोसु पपत्तयस्स ।
सध्वस्स नासो अहमा गई य॥ परस्त्री के राग में फँसे पुरुष का सब कुछ नाश हो जाता है और परलोक में अधम गति भी प्राप्त होती है।
आप भी गौतमकुलक के इस जीवनसूत्र पर मनन-चिन्तन करके परस्त्रीसंग को महाविनाशकारक समझकर सर्वथा छोड़ें। इसी में आपका, परिवार का, समाज का और राष्ट्र का -सभी का कल्याण है।
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