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________________ परस्त्री-आसक्ति से सर्वनाश : १९७ अत्यन्त प्रसन्न महारानी ने मालिन को और भी बहुत कुछ देने का आश्वासन दिया। मालिन से रानी ने तीसरे-चौथे दिन छद्मवेष में इस कामी युवक को लेकर आने का अनुरोध किया । परन्तु एक कहावत है-- पाप छिपायां ना छिप, छिप तो मोटा भाग । दाबी दूबी ना रहे, रुई लपेटी आग ।। भावार्थ स्पष्ट है। रानी सोचती थी कि मेरी बात कोई जान ही नहीं पाएगा, परन्तु किसी न किसी दिन बात फूटे बिना नहीं रहती । बहू को लेकर जब फूला वापस लौट रही थी, सीढ़ियों से उतरते समय कामान्ध युवक का पर इतने जोर से पड़ा कि 'धम्म' सी आवाज हुई। दीवानखाने में बैठे महाराज ने जब यह जोरों की आहट सुनी तो सोचा-'इतनी जोर की आवाज पुरुष के पैर के सिवाय नहीं हो सकती। कुछ दाल में काला दिखता है। अतः राजा ने पूछा-'फूलां ! यह कौन है तेरे साथ ?" डरती सहमती-सी फूलां बोली- 'अन्नदाता ! मैंने पहले आप से निवेदन किया था कि यह मेरी पुत्रवधू है ।" यों कहकर आगे बढ़ने लगी। राजा के हृदय का बहम मिटा नहीं। उन्होंने आदेश दिया एक पहरेदार को-"जाओ, इस नई बहू का मुह देखकर आओ। न दिखलाए तो आगे मत जाने दो।" राजपुरुषों ने दौड़कर फूलां का रास्ता रोक लिया, कहा--"हमें नई बहू का मुंह देखना है।" मालिन ने आनाकानी की। राजपुरुष हटे नहीं । एक राजपुरुष ने पीछे से ऐसा झटका दिया कि चेहरा एकदम नंगा हो गया। देखा तो दाढ़ी-मूछ वाला मर्द । अब तो राजपुरुष दोनों को पकड़कर राजा के पास लाए। राजा के क्रोध का पार न रहा । विश्वसनीय स्थान पर इतना विश्वासघात ! महलों में जाकर राजा ने सारी स्थिति ज्ञात की। राजा को रानी की नीच प्रकृति पर बड़ा दुःख हुआ । न्यायप्रिय राजा ने दण्ड देने का आदेश देकर पाप करने वाली रानी, करवाने में सहायक फूलां मालिन दोनों को जीते-जो दीवार में चुनवा दिया । उस व्यभिचारी युवक का मुंह काला करके गधे पर चढ़ाकर ढोल पीटते हुए समूचे नगर में घुमाकर फिर दोनों हाथ और दोनों पैर कटवा दिये और नगर के बीच चौराहे पर एक गड्ढा खुदवाकर गले तक गड़वा दिया। केवल मुह खुला रखा, ताकि जनता को पता चले कि यह महादुराचारी, व्यभिचारी, राजरानीगामी पुरुष है, जो देखे, वह धिक्कारे, मुंह पर थूके और जूते से सात बार पीटे। पास ही एक गड्ढा और खुदवाया कि जो इसकी प्रशंसा करे, उसकी भी यही हालत की जाए। सारे शहर में तहलका मच गया। सभी ने उस युवक को धिक्कारा, उसके मुंह पर थूका और जूते मारे । एक भगेड़ी नशे में चूर था, वह उस युवक के पास आया, बोला Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004015
Book TitleAnand Pravachan Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1981
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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