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१९६ : आनन्द प्रवचन ; भाग १२
तुम्हारे सिवाय और किसी से नहीं हो सकता। अतः तुम्हें मेरा यह गुप्त काम बड़ी होशियारी से करना होगा। किसी को भी पता न लगे, इसका ध्यान तुम्हें रखना है।"
फूलां रानी की अत्यन्त अनुचित, पीलधर्मविरुद्ध मांग को सुनकर चौंकी, कहने लगी-"महारानीजी ! आपके लिए यह काम शोभा नहीं देता। आप राजरानी नगरमाता-सदृश हैं । इस पर पुनः विचार करें।"
महारानी-"मैं सब कुछ जानती हूँ। पर उस युवक के बिना रह नहीं सकती। उसे तो तुम्हें किसी तरह लाना होगा । ले यह रत्नावली हार ।" यों कहकर फूलां के गले में वह लाखों की कीमत का हार डाल दिया।
फूलां बहुमूल्य हार पाकर प्रसन्न हुई और लोभवश इस अनुचित कार्य को करने के लिए तैयार हो गई। मालिन ने अपने घर पर आकर उस हार को रखा
और बगीचे में प्रतीक्षारत युवक से मिली। एकान्त में बुलाकर रानी का सन्देश सुनाया । युवक अत्यन्त हर्षित हो उठा। फिर दोनों महल में प्रवेश का उपाय सोचने लगे। फूलां ने एक उपाय सुझाया--"युवक ! अगर तुम स्त्री का वेष पहन लो तो तुम्हें अपनी नव-परिणीता पुत्रवधू कहकर राजमहल में पहुँचा दूंगी, किसी को जरा भी शंका नहीं होगी । गुप्त रूप से काम भी बन जाएगा।" कामान्ध युवक ने शीघ्र ही यह उपाय स्वीकार कर लिया। युवक के शरीर पर नववधू का वेश सजाया गया। उसने ग्रामीण मोटा-सा ओढ़ना ओढ़ लिया। लम्बा-सा घूघट तान लिया, सिर पर फूलों की टोकरी रख ली और आगे-आगे फूलां और पीछे-पीछे वह नववधू चलने लगी। गढ़ के सारे दरवाजे कांपते हृदय से उसने पार कर दिये। मालिन के विश्वास पर सबने उसे जाने दिया। किन्तु राजा के दीवानखाने के आगे से होकर जब मालिन गुजरने लगी, तो राजा ने मालिन के साथ किसी अजनबी महिला को देखकर सहज भाव से पूछ लिया-"फूलां ! यह दूसरी औरत कौन है, तेरे साथ ?"
फूलां बोली-“अन्नदाता ! मेरे बेटे की शादी हो गई। नई बहू घर में आ गई। इतने दिन तो यह अपने पीहर थी। आज ससुराल आई है, सोचा-इसे भी महारानीजी के दर्शन करवाकर राजघराने से परिचित करवा दूं क्योंकि मैं बूढ़ी होने आई हूँ ; आखिर तो इन्हीं लोगों को यह काम संभालना होगा। अतः इसे साथ ले आयी।"
राजा-'अच्छा, ले जा।" घाटी तो पार हो गई। दोनों तत्काल सीढ़ियाँ पार करके ऊपर चली गई। तीव्र प्रतीक्षारत महारानी फूलां के साथ दूसरी स्त्री को देख कर समझ गई कि मालिन बड़ी बुद्धिमानी से मेरे प्रेमी को ले आयी है। फूलां ने सब दासियों को अलग हटाकर उस कामी युवक को रानी से मिला दिया। दोनों की चिर अभिलाषा पूर्ण हई। कामान्धजन धर्ममर्यादा को बिलकुल ताक में रख
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