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१६४ : आनन्द प्रवचन : भाग १२
___ कामी पुरुष अधमरी हालत में अपना-सा मुह लेकर वहां से निकल भागा । घर पहुँचकर उसने बहुत उपचार कराया तब कुछ उठने-बैठने जैसा हुआ। फिर तो उसने मन ही मन प्रतिज्ञा करली कि अब कभी ऐसा बुरा काम नहीं करूंगा। जान बची, लाखों पाए।
___ यह है, परस्त्री में आसक्ति से होने वाली बर्बादी ! परस्त्री से होने वाली हानियों के सम्बन्ध में श्री अमृत काव्य संग्रह में ठीक ही कहा है
परतिय संग किये, हारे कुल कान दाम,
नाम धाम परम आचार दे विसार के । लोक में कुजस, नहीं करे परतीत कोऊ,
प्रजापाल दंडे औ विटंबे भान पारि के ।। पातक है भारी, दुखकारी भवहारी नर,
कुगति सिधावे व श होय परनारि के । यातें अमीरिख धारे. शियल विशुद्धचित्त
तजो कुव्यसन हित साख उर धारि के ॥ भारतीय इतिहास कहता है, जितने भी परस्त्रीगामी हुए हैं, उनके तन, मन, धन, साधन, प्राण और धर्म की दुर्दशा हुई है। रावण कितना शक्तिशाली राजा था, किन्तु परस्त्री में आसक्ति ही उसको तथा उसके वंश को ले डूबी।
शिवाजी का पुत्र सम्भाजी परस्त्रीगामी था। जोधपुर के वीर राठौड़ दुर्गादास रात को अपने मकान में बैठे-बैठे परमात्मा का भजन कर रहे थे कि एक युवती रक्षा के लिये चिल्लाती हुई भाग रही थी। सम्भाजी उसके पीछे हाथ में तलवार लिये आ रहा था। वीर दुर्गादास ने उसे शरण दी। कामान्ध सम्भाजी दुर्गादास से लड़ने को तैयार हो गया । उसने सम्भाजी से तलवार छीन ली। सम्भाजी के पास औरंगजेब का एक जासूस किबलेखाँ रहता था। उसने सम्भाजी को कैद करके औरंगजेब के समक्ष पेश किया । औरंगजेब ने सम्भाजी के हाथ पैर कटवाकर बुरी तरह मरवा डाला । यह सब परस्त्रीगमन का परिणाम था । परस्त्री से संसर्ग करने वालों का बुरी तरह सफाया
परस्त्री एक ऐसी जहरीली बेल है, जिसका स्पर्श करने, कराने और अनुमोदन करने वाले सब लोगों का सब तरह से सफाया हो जाता है ।
किसी नगर के राजा की रानी बहुत चंचल स्वभाव की थी। राजा द्वारा तो वह अत्यन्त सम्मानित होती थी, मगर अन्तर् से सन्तुष्ट नहीं थी। किन्तु किसी परपुरुष का प्रवेश राजमहल में आसान नहीं था। ५ वर्ष से ऊपर की आयु का बालक भी अन्दर नहीं जा सकता था। मगर रानी अपनी कामुकवृत्ति से प्रेरित होकर इधर-उधर ताक-झांक करती रहती थी।
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